'विचार प्रवाह'
Monday, August 4, 2014
Friday, July 25, 2014
Monday, July 21, 2014
Friday, July 18, 2014
Monday, July 14, 2014
Tuesday, October 1, 2013
गुजरा जमाना .....!
बहुत याद आये है वह
गुजरा जमाना .....!
वो चाय की प्याली
और तेरा रूठ जाना |
रूठने मनाने के झगड़े में
वो तेरा चेहरे पर से
जुल्फों को हटाना ....!
बहुत याद आये है वह
गुजरा जमाना .....!
वो भागते हुए तेरा
ट्रेन पकड़ना और
पानी की बोतल घर भूल जाना
वो फोन की ट्रिंग ट्रिंग
वो तेरा झल्लाना
और फिर हौले से कहना ,
जो 'तुम' हो तो
अच्छा है यह भूल जाना |
बहुत याद आये है वह
गुजरा जमाना .....!
वो तेरी दोस्तों के साथ
रातों की मस्ती और
सुबह के इम्तेहान का हव्वा
फिर भी तेरा यह
कह के सो जाना
उठाने के लिए तुम हो
तो कल से क्या घबराना |
बहुत याद आये है वह
गुजरा जमाना .....!
वो जे ऐन यू की खूबसूरत बलाएँ
और तुम्हारा उनमे उलझ जाना
हर दिन का पूरा किस्सा सुनाना
या कभी कहना
विजी हूँ .. डिस्टर्ब ना करना
फिर बापस आके मुस्कराते हुए कहना
हर कोई तुमसा क्यों नहीं होता ... !
बहुत याद आये है वह
गुजरा जमाना .....!
प्रियंका राठौर
Monday, September 23, 2013
रफ़्तार ....
जो रफ़्तार में थे
उन पीले गुलमोहरों पर
बैठी तितली को ना देख पाए ।
ना छू पायें उस ऒस की बूँद को ,
जो सुबह सुबह घास के आखिरी छोर पर टिकी थी ।
जो रफ़्तार में थे
मूंगफली के दानों को कुतर कुतर कर खाती उस गिलहरी को पीछे छोड़ गये ,
घर की बालकनी में रखा तुलसी का पौधा सूख रहा है ।
पिज़्ज़ा बर्गर की होम डिलीवरी में , माँ का हलुआ पुड़ी छूट चूका है ।
वो जो रफ़्तार में थे
सब कुछ पीछे छोड़ गए हैं ...
रिश्ते नाते , प्यार अपनापन ,
सब कुछ गति में भूल चुके हैं ...!
उन पीले गुलमोहरों पर
बैठी तितली को ना देख पाए ।
ना छू पायें उस ऒस की बूँद को ,
जो सुबह सुबह घास के आखिरी छोर पर टिकी थी ।
जो रफ़्तार में थे
मूंगफली के दानों को कुतर कुतर कर खाती उस गिलहरी को पीछे छोड़ गये ,
घर की बालकनी में रखा तुलसी का पौधा सूख रहा है ।
पिज़्ज़ा बर्गर की होम डिलीवरी में , माँ का हलुआ पुड़ी छूट चूका है ।
वो जो रफ़्तार में थे
सब कुछ पीछे छोड़ गए हैं ...
रिश्ते नाते , प्यार अपनापन ,
सब कुछ गति में भूल चुके हैं ...!
प्रियंका राठौर
प्रियंका राठौर
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