Friday, September 30, 2011

ना कर इतना ......





ना कर इतना
की झुक जाये
सर मेरा
तेरे सजदे के लिए ........

बामुश्किल -
सुलझ पाई थी
उन लम्हों से
ना कर इतना
की फिर
एक बार
वही कहानी दोहरा जाये ........

ठहराव में तेरे
डूब रहा है
अब ये मन इतना
कहीं टूट ना जाये
स्व मेरा
तुझमे लीन होने के लिए ........

ना कर इतना
ना कर इतना
की झुक जाये
सर मेरा
अब -
तेरे सजदे के लिए ..................



प्रियंका राठौर

Wednesday, September 28, 2011

मै अच्छी थी ....





सारी रात जागती रही
कशमकश में जूझती रही
क्या हुआ ?
कैसे हुआ ?
क्यों हुआ ?
प्रश्नों की कड़ियाँ
मस्तिष्क में कौंधती रही ......

दिल दुखाया ?
स्व निभाया ?
या -
अपना बनाया ?
छत पर लटके घूमते पंखे पर
टकटकी बांधे पहर बीत गयी
तभी -
कही खिड़की से आती
एक पतली किरण जगमगाई
मन के गुबार में
जाले बुनते - बुनते
यही परिणाम समक्ष आया -

मै अच्छी थी
हाँ
मै अच्छी थी
इसलिए -
बाहर हूँ आज
उस जिन्दगी से .....
टूटे हुए तारे सी ......



प्रियंका राठौर

Tuesday, September 27, 2011

....." रेवांत सम्मान ".....



ईश्वर का आभार ......समय चक्र के बढते क्रम में ...सफलता की ओर पहला सोपान .....” रेवांत सम्मान “..... चलो साहित्यकारों की श्रेणी में तो आये ..... J






























-प्रियंका राठौर

Monday, September 19, 2011

बीते वक्त के तम में ......




गया था खो , कुछ
बीते वक्त के तम में .....
यहाँ ढूँढा , वहां ढूँढा
चारो ओर ढूंढ का शोर ....
हुयी विस्मृत -
खोज ही खोज  में
क्या खोया था
बीते वक्त के तम में ....
युगों - युगों के बढ़ते क्रम में
थापों का झंकृत संगीत
संसार इंद्रधनुषी रंगों का
सिमट गया
अनुभव स्पर्शित बेल में ....
हुयी स्म्रति -
जो खोया था तम में
समक्ष खड़ा  है
एक नवीन रूप में
शायद -
मिल गया वह सब कुछ
गया था खो , जो
बीते वक्त के तम में ...... !!!!



प्रियंका राठौर

Sunday, September 11, 2011

वजूद ...




सीमित दायरों
में बंध
जीवन हो गया
निरुत्तर प्रश्न ......

खोज - खोज
कर मायनों को
वजूद ही
हो गया
अंतिम प्रश्न ........


प्रियंका राठौर

Thursday, September 8, 2011

कितना मुश्किल है ....






कितना मुश्किल है ....
खुद को सहेजना
खुद को समेटना
उन भेदती हुयी
निगाहों से
जो जिस्म क्या
अंतस को भी
आर - पार
छील देती हैं .....
जिसके बाद -
सिर्फ शेष
रह जाता है ....
रिसता हुआ खून
और
ना भर पाने वाले जख्म ......!!!!



प्रियंका राठौर

Tuesday, September 6, 2011

सन्नाटा....





रात के सन्नाटे को
चीरती हुयी यादें
गोधुलि की तरह
हाँ और ना के बीच में
अँधेरा ही दे जाती है !
पल -पल का इन्तेजार था
दुःख में भी
सुख का अहसास था
एक अनमोल मुक्ताहार था
फिर भी ना जाने क्यों आज
तड़पन ही नजर आती है
रात के सन्नाटे को
चीरती हुयी यादें बबंडर की तरह
जीवन ही डुबो जाती हैं !!


प्रियंका राठौर

Saturday, September 3, 2011

मेहँदी




 
 
खूब है रंग मेहँदी का
आज तेरे हाथों में
क्योकि - सजा है नाम
मेरे उनका
तेरे हाथों में .....
हैं दुआएं अब मेरी
साथ तेरे हर पल
क्योकि -
जुड़ गया है
नाम तेरा उनके नाम में .......
अब तो हर क्षण
तुम ही उनके साथ नजर आओगी
जीवन के हर डगर पर
उनकी अर्धागनी कहलाओगी
कहती हूँ कुछ शब्दों को तुमसे
सखी समझ कर रखना मान
अब तो सात फेरों के सातों वचन
ही हो तुम्हारे जीवन का आधार
बन जाये सिन्दूर  ही अब
तुम्हारे जीवन का श्रंगार
हम साया होगी अब तुम उनकी
नम ना होने देना कभी आँखें उनकी
उनके घर आँगन का रखना ध्यान
उनकी आन है अब तुम्हारे हाथ ...........
खूब है रंग  मेहँदी का 
आज तेरे हाथों में .....
क्योकि जुड़ गया है
नाम तेरा अब उनके नाम में ................



प्रियंका राठौर

Thursday, September 1, 2011

तुम दोनों .....








कितना मुश्किल है
ये हर  वक्त का बहना 
रुकना चाहूँ भी 
तो कैसे रुकूँ ......
तुम दोनों भी तो 
चल रहे  हो 
साथ मेरे 
लेकिन -
अलग अलग छोरों पर .....
जो कभी  मिलोगे 
तुम दोनों 
तभी तो रुक पाऊँगी
अन्यथा यूँही
अनवरत बहना होगा ......
कभी देखती हूँ
उस क्षितिज पर
जहाँ तुम दोनों
दिखते हो मिलते हुए
लेकिन तब
मै नहीं आती
नजर -
ख़त्म हो जाता है
मेरा अस्तित्व ....
पतली सी खिची रेखा
जो तुम दोनों में
ही समा जाती है ........
शायद -
अभी वक्त नहीं है
मेरे लीन होने का
वजूद के समर्पण का .....
तभी तुम दोनों
साथ साथ होकर भी
बहुत दूर हो .....................




प्रियंका राठौर