रचने चली हूँ
फिर एक संसार ...
जिसमे है -
वो टिमटिम आँखों वाली
दुबली पतली बार्बी ...
साथ खड़ा वो
मासूम हरा श्रैक .....
न जाने कहाँ से .
आया टॉम यहाँ पर
शायद कर रहा है
पीछा प्यारे जैरी का ....
ये क्या !
काकश ने पीछे से आकर
खाया है काट
मेरे गोलू श्रैक को ..
गोल गोल सी आँखों में
अब मोटी मोटी बूँदें हैं .....
ऐ बार्बी -
रोक लो श्रैक के
आंसुओं को
आएगी विली तो
काकश के कन्पुच्ची लगाएगी ..
अरे आज तो -
मोगली के साथ
छोटा भीम भी है ....
लगता है -
फिर आज एक
नया खेल शुरू हो जायेगा .....
अर्र ....अर्र .....
ये क्या ......
होने लगा क्यों
ये संसार कुछ धुंधला सा ....
धत्त ....
वो तो प्यारा सपना था
जो खुली आँखों से देखा था .....
सारे पात्र मेरी
मुस्कराहटों के -
एक साथ सब
एक स्वप्न तले ........
क्यों गुड है ना :)
प्रियंका राठौर
वो तो प्यारा सपना था
ReplyDeleteजो खुली आँखों से देखा था .....
गणतंत्र दिबस की हार्दिक शुभकामनाए,,,
recent post: गुलामी का असर,,,
अच्छी प्रस्तुति |
ReplyDeleteआभार आदरेया ||
सबको एक साथ ला दिया ।
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति |
आप सभी का बहुत बहुत धन्यबाद ... आभार ...!
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