बीच सड़क पर
खून से लथपथ एक आदमी ....
चारों ओर से
घूरती हुयी आँखें
हजार सवाल ....
लेकिन -
आगे बढकर
मदद के लिए इनकार.......
एक पल को ठिठकी
कांपते हाथों से
उस इन्सान की
नब्ज को टटोला
सांसें चिर विलीन हो चुकी थीं ...
मैले कुचले .. खून से सने कपड़े
साथ - ढेर सा कबाड़
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कहीं पीछे से आती
एक आवाज कान में गयी
'कबाड़ी वाला था
जल्दी सड़क पार करने को उतावला था
मिलेट्री की गाड़ी ने कुचल दिया ......'
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स्वयं की निगाहें उस
कबाड़ पर थी
कैसे उसकी पहचान का पता चले
तभी -
सायरन की आवाजें
आने लगीं
कुछ ही पलों में
लाश समेट दी गयी ......
हत्यारे जा चुके थे
भीड़ छटने लगी थी
मौत की गलती का
ठीकरा कबाड़ी वाले पर
फोड़ दिया गया था .........
इन बढ़ते हुए द्रश्यों में
मन की उथल पुथल के साथ
जेहन में एक ही सवाल गूंज रहा था ...
क्या -----
मौत इतनी सस्ती है .........
क्या -----
गरीब की मौत
इतनी सस्ती है ........!!!!!!!!!
प्रियंका राठौर