Monday, February 21, 2011

भीगे भीगे से शब्द ....







भीगे भीगे से शब्द
हैं व्याकुल कुछ
भावों का मुक्ताहार बनाने को !
स्वप्नों का जाल बुनकर
पलकों में मधु पराग छिपाए
ना जाने किसका इंतजार ,
हर एक दस्तक देती थी
उत्सुकता किसी सन्देश की !
नियति इन्तेजार करवाती रही
जीवन बीत गया !
आस की हुयी निराश में तबदीली
पलकों से स्वप्न झरें
कुछ टूटे बिखरे से
यहीं कहीं धरती पर !
ऐसे में हे ! ईश
तुम आये बनकर शिवम् स्वरूप
भावों का फिर संचार हुआ
नया मुक्ताहार हुआ 
प्रेम नीर से रंजित 
भीगे भीगे से शब्द 
जो हैं व्याख्येय 
श्वेत समर्पण रूप !!





प्रियंका राठौर







18 comments:

  1. प्रिय प्रियंका राठौर
    बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत कविता...
    अच्छा काव्य प्रयास है … और श्रेष्ठ सृजन के लिए मंगलकामना है ।

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  2. ऐसे में हे ! ईश
    तुम आये बनकर शिवम् स्वरूप
    भावों का फिर संचार हुआ
    नया मुक्ताहार हुआ

    wah ji wah
    bahut hi sunder

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  3. अच्छी रचना, सारगर्भित।

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  4. निराशा के बाद आशा की किरण दिखी....अच्छा लगा.....अच्छी प्रस्तुति...

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  5. आशा का संचार करती खूबसूरत प्रस्तुति

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  6. भावों का फिर संचार हुआ
    नया मुक्ताहार हुआ
    प्रेम नीर से रंजित
    भीगे भीगे से शब्द
    जो हैं व्याख्येय
    श्वेत समर्पण रूप !!

    सुंदर सारगर्भित रचना ....

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  7. priyankaa ji bhtrin bhtrin mubark ho . akhtar khan akela kota rajsthan

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  8. आशा की किरण का स्वागत अच्छा लगा सारगर्भित और सुंदर रचना , शुभकामनायें

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  9. भीगे भीगे से शब्द
    हैं व्याकुल कुछ
    भावों का मुक्ताहार बनाने को !...
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...बधाई
    आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ ,आकर अच्छा लगा .कभी समय मिले तो http://shiva12877.blogspot.com ब्लॉग पर अपनी एक नज़र डालें .
    फोलोवर बनकर उत्साह बढ़ाएं .. धन्यवाद् .

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  10. प्रियंका जी
    सादर सस्नेहाभिवादन !

    बहुत अच्छी कविता है , बधाई !

    प्रारंभ उतार चढ़ाव भरा है -
    आस की हुई निराशा में तब्दीली …
    पलकों से स्वप्न झरे …

    …लेकिन आपकी कविता आशावादी स्वर के साथ आगे बढ़ती है
    … ऐसे में हे ईश !
    तुम आये बनकर शिवम् स्वरूप …
    भावों का फिर संचार हुआ …


    जो मैं कमेंट में कहा करता हूं वे शब्द ही चुरा लिए गए हैं … :)
    इसलिए … मंगलकामनाओं के साथ विदा …
    बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  11. अच्छा है.... आस नहीं टूटी!
    आशीष
    ---
    लम्हा!!!

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  12. bahut hi sudnar kavita , prabhu ji ki krupa ko naman karti hui kavita ..

    badhayi

    -----------
    मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .
    आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
    """" इस कविता का लिंक है ::::
    http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
    विजय

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  13. awesome...I am now fan of your writing...

    bahut hi sunder sabdo ka paryog...khubsurat kavita..

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  14. आज मैं आपके ब्लॉग पर पहली बार आई हूँ आकर बहुत अच्छा लगा आपकी हर रचना बेहद खुबसूरत शब्दों से सजी है....

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  15. बहुत ही बढ़िया।

    सादर

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