जिस्म बिकता है
बाजारों में भी .......
उसकी चुकानी
पड़ती है कीमत .......
एक 'इमोशन लेस' 'यूज'
और फिर 'थ्रो'
उसमें वो
बात कहाँ .......
बुझाने गए थे आग
खुद झुलस कर चले आये .....
अब क्या -
अन्दर की सुलगती
आग को
शांत कैसे किया जाये ?
नया दांव -
'इमोशनल' प्रपंच का ,
जिस्म तो जिस्म है ,
आंगन का हो तो
सबसे बेहतर -
कमसिन कौमार्य
समर्पित मन
दों रातें बिस्तर पर
'आत्मसंतुष्टि'
'इमोशन' के साथ 'यूज'
जैसे ईश्वर पा लिया .......
तन शांत
मन शांत
और
जेब भी शांत .......
क्योकि -
कीमत कुछ भी नहीं ,
बस -
मीठे शब्दों का भंडार
जो 'इक्वेलेंट' हैं
'फ्री ऑफ़ कास्ट' के .....
इसलिए -
जिस्म बिकता है
बाजारों में भी
लेकिन -
आँगन के जिस्म की
बात अलग है ......
'इमोशनल ट्रेपिंग' से
'इजली ऐव्लेविल' जो है .......!!!!!!!!!
[ रचना में 'बोल्ड' और 'डायरेक्ट' लहजे का प्रयोग कथ्य के मर्म तक जाने का रास्ता भर है ....... आभार ]
प्रियंका राठौर
सीधे-सीधे सच्चाई.... थॉट-प्रोवोकिंग.....
ReplyDeleteहिन्दी के साथ सही मात्रा में अंग्रेजी के उपयोग ने इस रचना की विश्वसनीयता बढा दी है...
bold and beautiful............
ReplyDeleteso Real and bold thought. keep it up priyanka.
ReplyDeletebehtreen abhivaykti....
ReplyDeleteइमोशन लेस मिलता,जिस्म बाजारों में खूब
ReplyDeleteआत्मसंतुष्टि घर में मिले,कर इमोशन यूज,,,,,,,,,,
बहुत बढ़िया प्रस्तुती,
RECENT POST काव्यान्जलि ...: आदर्शवादी नेता,
beautiful presentation
ReplyDeletevery nice.
ReplyDeleteविषय के साथ इन्साफ करती कविता ...बहुत खूब
ReplyDeleteअंजु जी की बात से पूर्णतः सहमति है विषय के साथ इंसाफ करती पोस्ट ...:)
ReplyDeleteGood one!
ReplyDeletenice
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