आज फिर ....
आज फिर -
हथेलियों से उन्हीं लम्हों को छुआ ,
जिन्हें कभी हमने साथ जिया था |
पता नहीं -
तुम्हें ढूँढा
या
खुद को पाया ,
लेकिन -
मन का झोला अभी भरा भरा सा है |
कह नहीं सकती -
तुम्हारे अहसासों से
या फिर
दर्द की कतरनों से ....
या शायद -
दोनों ही से ...... !
प्रियंका राठौर
बहुत सुंदर.
ReplyDeleteनई पोस्ट : छठी इंद्री (सिक्स्थ सेंस) बनाम खतरे का संकेतक
बहुत लाजवाब ... छूने से लम्हों में जान आ जाती है ... प्रेम महक उठता है ...
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद .... !
ReplyDeleteYour words are too effective.
ReplyDeleteThanks for delivering these types of poems.