Monday, July 21, 2014

वो बारिश ....




कल रात फिर 
तेज बारिश हुयी थी ,
और 
बूँद बूँद से टपकते तुम 
मेरे अहसासों को 
पूरा तर कर गए |
अब -
सुबह गीली है ,
आत्मा की नमी 
बिस्तर के सिरहाने पड़ी है |
दिमाग का सूरज 
अहसासों के बादल से बाहर
नहीं आना चाहता ,
आज फिर मुझे 
'तुम' होकर ही दिन गुजारना होगा |


प्रियंका राठौर 

6 comments:

  1. मन के भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने...

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बृहस्पतिवार (24-07-2014) को "अपना ख्याल रखना.." {चर्चामंच - 1684} पर भी होगी।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. बहुत बहुत धन्यबाद ... सर ।
      आभार ।

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  3. आज फिर मुझे
    'तुम' होकर ही दिन गुजारना होगा |
    बारिश की टप टप में तुम्हारी याद बरसाती बूंदों की तरह टपक ही जाती है जेहन में। ............. बहुत बढ़िया

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