गुमसुम -गुमसुम, खोया खोया
आसमान को तकता बचपन !
चिड़ियों के पंखों में
पशुओं की दौड़ों में
खुद को तलाशता बचपन !
दूर कहीं झंकृत संगीत
थापों की थप- थप
रुनझुन- रुनझुन घुंघरू की
खुद ही तरसता बचपन !
घर के आँगन में,
भीड़ में, एकांत में,
कण- कण से कण-कण में
माँ को ढूंढ़ता बचपन !
एहसासों में कृन्दन
अश्रु नेत्रपटल की
ओट में,
जीवन के आयामों से
लोगों से, दीवारों से
खुद को बहलाता बचपन !
दूर कहीं --
गुमसुम-गुमसुम खोया-खोया
आसमान को तकता बचपन !!
प्रियंका राठौर
बचपन तो हर हाल में याद आता है ... हर पल सताता है ...
ReplyDeleteअच्छी रचना है ....