Monday, August 23, 2010

बचपन














गुमसुम -गुमसुम, खोया खोया
आसमान को तकता बचपन !
चिड़ियों के पंखों में
पशुओं की दौड़ों में 
खुद को तलाशता बचपन !
दूर कहीं झंकृत संगीत 
थापों की थप- थप
रुनझुन- रुनझुन घुंघरू की
खुद ही तरसता बचपन !
घर के आँगन में,
भीड़ में, एकांत में,
कण- कण से कण-कण में
माँ को ढूंढ़ता बचपन !
एहसासों में कृन्दन 
अश्रु नेत्रपटल की 
ओट में,
जीवन के आयामों से
लोगों से, दीवारों से 
खुद को बहलाता बचपन !
दूर कहीं --
गुमसुम-गुमसुम खोया-खोया 
आसमान को तकता बचपन !!


प्रियंका राठौर  

1 comment:

  1. बचपन तो हर हाल में याद आता है ... हर पल सताता है ...
    अच्छी रचना है ....

    ReplyDelete