शरीर को
सूरज की तपिश
झुलसा रही है ....
बनते हुए
जख्मों से
खून का रिसना
बदस्तूर जारी है ....
कदम बढ़ना
चाहते हैं ,
लेकिन -
चाहकर भी
बढ़ नहीं पाते....
आह !
शरीर धराशायी हो गया ....
चेतना लुप्त
हो रही है ....
अरे !
कुछ दिख रहा है ,
धुंधला सा -
वो कवच ही है ना
जो टूट कर
मिट्टी में मिल चुका है....
जीव दूर खड़ा
मुस्करा रहा है ....
आह !
शायद -
मै मर चुकी हूँ ....
और -
दूर खड़े होकर
समय की रास लीला
देख रही हूँ ....
क्योकि -
अभी शरीर का
मिट्टी में मिलना
शेष है .........!!!!!!!
प्रियंका राठौर
Amazing thought,jinhe aapne piroya hai,behad naazuk lafzo'n me'n......beautiful!!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteदूर खड़े होकर
ReplyDeleteसमय की रास लीला
देख रही हूँ ....
क्योकि -
अभी शरीर का
मिट्टी में मिलना
शेष है!!!!!!!
बहुत बढ़िया प्रस्तुति,भावपूर्ण सुंदर रचना,...
बहुत दिनों से पोस्ट पर आप नहीं आई,...आइये स्वागत है
RESENT POST...काव्यान्जलि ...: बसंती रंग छा गया,...
शरीर की यही परिणिति है .... सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबेहतरीन।
ReplyDeleteसादर
sundar rachna ...gahre bhav samete huye .aabhar .AB HOCKEY KI JAY BOL
ReplyDeleteगहन भाव अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteमिटटी का पुतला पड़ा, मिटटी से क्या मीत ।
ReplyDeleteमूढ़मती पढ़ मर्सिया, चली आत्मा जीत ।|
दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक
dineshkidillagi.blogspot.com
मिट्टी को मिट्टी में मिलना ही होता है... गहन भाव...
ReplyDeleteक्योकि -
ReplyDeleteअभी शरीर का
मिट्टी में मिलना
शेष है .........!!!!!!!
.....बहुत खूब प्रियंका
होली की सादर बधाईयाँ...
जरूरी कार्यो के ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ
आत्मा देख रही है....क्या हाल है उस तन का, जिस पर तुम्हें इतना अभिमान था... था...
ReplyDeleteसुन्दर रचना..
जीवन का अंतिम सत्य शायद यही है ...
ReplyDeleteबहुत खूब ...
aahh kya likha hai...seedhe dil par asar karti hai....
ReplyDeleteदूर खड़े होकर
ReplyDeleteसमय की रास लीला
देख रही हूँ ....
क्योकि -
अभी शरीर का
मिट्टी में मिलना
शेष है .........!!!!!!!
..yahi to shaswat satya hai..
badiya lagi rachna aur chitra..
मौत कभी हश्र का मोहताज नहीं
ReplyDeleteमौत आगाज़ है अंजाम नहीं
आपका मेरे ब्लॉग पर स्वागत है
माँ रचना पढ़ें विचारों का स्वागत .
Amazing.. wonder ful share..
ReplyDeleteSTC Technologies