ना ना
मत तोड़ना
उस क्षितिज को
वह तो
यूँ ही बस
कह दिया था तुमसे ......
वह दूर क्षितिज
खामोश ,
शांत ,
निश्छल ,
वही तो पड़ाव है
हमारे मिलन का ........
कभी देखा है
तुमने
धरा और अम्बर को
मिलते हुए
लेकिन -
वो मिलते हैं
उसी क्षितिज पर
हमारी ही तरह .......
इसलिए -
मत तोड़ना
उस क्षितिज को
अभी कई सदियाँ
और
कई मिलन बाकी हैं ................!!!!!!
प्रियंका राठौर
सुन्दर ... आशा हमेशा जीवित रहनी चाहिये , कोई कुछ भी कहे
ReplyDelete... सादर छुटकी का भईया
वह दूर क्षितिज
ReplyDeleteखामोश ,
शांत ,
निश्छल ,
वही तो पड़ाव है
हमारे मिलन का ........sunder abhivykti ......
क्षितिज मेरी आस है , उस भ्रम को रहने देना
ReplyDeleteसुंदर भाव अभिव्यक्ति की बेहतरीन रचना,..
ReplyDeleteNEW POST...फिर से आई होली...
सुंदर भाव अभिव्यक्ति की बेहतरीन रचना,..
ReplyDeleteNEW POST...फिर से आई होली...
इसलिए -
ReplyDeleteमत तोड़ना
उस क्षितिज को
अभी कई सदियाँ
और
कई मिलन बाकी हैं ................!!!!!! bilkul sahi kahan apne.... behtreen bhaavo ko shabdo me piroya hai apne....
कुछ बातें यूँ भी नहीं कहनी चाहियें
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
होलिकोत्सव की शुभकामनाएँ!
अभी कई सदियाँ
ReplyDeleteऔर
कई मिलन बाकी हैं ................!!!!!!
आह ! भरम तो कायम रहना चाहिये
सही ही तो है जीने के लिए कोई भ्रम का कायम रहना भी ज़रूरी है।
ReplyDeleteक्या बात है... सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबधाईयां...
क्षितिज ही तो है पहचान अनंत मिलन की !
ReplyDeleteबेहतरीन !
मिलन का भरम ना टूटे कभी....
ReplyDeleteसुन्दर रचना प्रियंका जी..
बहूत सुंदर ,गहन अभिव्यक्ती है
ReplyDelete