जो रफ़्तार में थे
उन पीले गुलमोहरों पर
बैठी तितली को ना देख पाए ।
ना छू पायें उस ऒस की बूँद को ,
जो सुबह सुबह घास के आखिरी छोर पर टिकी थी ।
जो रफ़्तार में थे
मूंगफली के दानों को कुतर कुतर कर खाती उस गिलहरी को पीछे छोड़ गये ,
घर की बालकनी में रखा तुलसी का पौधा सूख रहा है ।
पिज़्ज़ा बर्गर की होम डिलीवरी में , माँ का हलुआ पुड़ी छूट चूका है ।
वो जो रफ़्तार में थे
सब कुछ पीछे छोड़ गए हैं ...
रिश्ते नाते , प्यार अपनापन ,
सब कुछ गति में भूल चुके हैं ...!
उन पीले गुलमोहरों पर
बैठी तितली को ना देख पाए ।
ना छू पायें उस ऒस की बूँद को ,
जो सुबह सुबह घास के आखिरी छोर पर टिकी थी ।
जो रफ़्तार में थे
मूंगफली के दानों को कुतर कुतर कर खाती उस गिलहरी को पीछे छोड़ गये ,
घर की बालकनी में रखा तुलसी का पौधा सूख रहा है ।
पिज़्ज़ा बर्गर की होम डिलीवरी में , माँ का हलुआ पुड़ी छूट चूका है ।
वो जो रफ़्तार में थे
सब कुछ पीछे छोड़ गए हैं ...
रिश्ते नाते , प्यार अपनापन ,
सब कुछ गति में भूल चुके हैं ...!
प्रियंका राठौर
प्रियंका राठौर
सच मुच । इस रफ़्तार की जिंदगी में न जाने कितनी ही चीज़ें पीछे रह गई, जिन्हें फिर से पाना अब नामुमकिन सा है ।
ReplyDeleteमेरी नई रचना :- चलो अवध का धाम
सच ही तो है ...बहुत सुंदर एवं सार्थक रचना।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना !
ReplyDeleteनई रचना : सुधि नहि आवत.( विरह गीत )
बहुत बहुत धन्यबाद सर |
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत धन्यबाद ... आभार |
ReplyDeleteबहुत मार्मिक ..
ReplyDeleteबहुत मार्मिक ..
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