Monday, September 23, 2013

रफ़्तार ....




जो रफ़्तार में थे
उन पीले गुलमोहरों पर
बैठी तितली को ना देख पाए ।
ना छू पायें उस ऒस की बूँद को ,
जो सुबह सुबह घास के आखिरी छोर पर टिकी थी ।
जो रफ़्तार में थे
मूंगफली के दानों को कुतर कुतर कर खाती उस गिलहरी को पीछे छोड़ गये ,
घर की बालकनी में रखा तुलसी का पौधा सूख रहा है ।
पिज़्ज़ा बर्गर की होम डिलीवरी में , माँ का हलुआ पुड़ी छूट चूका है ।
वो जो रफ़्तार में थे
सब कुछ पीछे छोड़ गए हैं ...
रिश्ते नाते , प्यार अपनापन ,
सब कुछ गति में भूल चुके हैं ...!




प्रियंका राठौर

7 comments:

  1. सच मुच । इस रफ़्तार की जिंदगी में न जाने कितनी ही चीज़ें पीछे रह गई, जिन्हें फिर से पाना अब नामुमकिन सा है ।

    मेरी नई रचना :- चलो अवध का धाम

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  2. सच ही तो है ...बहुत सुंदर एवं सार्थक रचना।

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  3. बहुत बहुत धन्यबाद सर |

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  4. आप सभी का बहुत बहुत धन्यबाद ... आभार |

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  5. बहुत मार्मिक ..

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  6. बहुत मार्मिक ..

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