उस रात के वीराने में ,जहाँ दूर दूर तक हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था -वहां सिर्फ उसकी पायल की छम - छम ही सुनाई दे रही थी ... नहर की पगडंडियों पर भागते हुए वह किसी की सांसों को महसूस कर रही थी .....ये तो वही है जिसका इंतजार है ...जिसके लिए श्रंगार है ...पर दिखाई क्यों नहीं देता ....बस महसूस हो रहा है - एक करुण आर्तनाद और मद्धम होती सांसों की आवाज ....कुछ तो है ....कोई बंधन है .....फिर ये आँखें नम क्यों ?
उत्तर खोजने की उधेड़बुन में वह कहीं टकराई ....शरीर लहुलुहान हो गया था ....चुनरी उस झाड़ी में उलझ कर तार - तार हो गयी थी और चूड़ियाँ टूट गयी थीं ....लेकिन फिर वही छम - छम की आवाज उस वीराने को गुन्जायेमान करने लगी ...
भागते - भागते अब पायल के घुंघरू भी बिखरने लगे थे ....तभी फिर एक करुण अहसास महसूस हुआ ....वह रुकी - अँधेरा निगलने को आ रहा था ...लेकिन वह मंजिल पर पहुँच
चुकी थी - एक अजनबी ----लेकिन अपना सा ....जिसकी टूटती सांसें उसको छोडकर जा
नहीं पा रही थीं ...उसकी आँखों में भी एक इंतजार था - अनंत सा ..... आह ! ये कैसा बंधन है जो जुड़ कर टूटने को है ...क्या यही है वो जिसका इंतजार था - या फिर म्रग तृष्णा .....कांपते हाथों से उसने उस अजनबी को स्पर्श किया - स्पर्श के साथ ही सांसें चिर विलीन हो चुकी थी , लेकिन चेहरे पर त्रप्त - शांत चित्त मुस्कान बिखर गयी थी .....
उसकी आँखों से अश्रु धरा बह चली - उन आंसुओं के सैलाब में बंधन डूबता जा रहा था - कुदरत ने तो रास्ते भर में ही श्रंगार विहीन करना शुरू कर दिया था और इति होने तक उसका वैधव्य खुद व खुद दिखने लगा था ---- क्या मिलन और क्या विछोह .....इसी के साथ जीवन के विभिन्न आयामों का एक चक्र और शुरू ....................!!!!!!!!!!!!!!
प्रियंका राठौर
marm ko chhuti kahani
ReplyDeletebahut achhi prastuti
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति..
ReplyDeleteबेहद मर्मस्पर्शी चित्रांकन्।
ReplyDeleteप्रिय प्रियंका
ReplyDelete....मर्मस्पर्शी प्रस्तुति
jittni acchi prastuti uttni hi acchi painting ka istemaal kiya hai aap ne....best wishes
ReplyDelete