क्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं अगर मुझे थोडा-सा साथ(धर्म और जाति से ऊपर उठकर"इंसानियत" के फर्ज के चलते ब्लॉगर भाइयों का ही)और तकनीकी जानकारी मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ. आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें
bahut hi chhoti si kabita me gehre bhaaw chhupe hue....khubsurat rachna...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया.
ReplyDeleteसादर
zindgi.........
ReplyDeleteuljhav itna hai ki suljhaav me hi beet jati hai
aapki kavita achhi lagi
shukriya !
अहसासों में ठहराव कहाँ
ReplyDeleteयादों में जिन्दगी ही
उलझी जाती है ............
बहुत सुन्दर गहन अभिव्यक्ति..
प्रिय प्रियंका
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
एक और सुन्दर कविता आपकी कलम से !
ek acchi rachna aapki..
ReplyDeletei liked..
कभी ढलता सूरज
तपन देता है
तो कभी ओस की
बूँद ही भिगो जाती है !
"शाम से आँखों में नमी सी है,
ReplyDeleteआज फिर तेरी कमी सी है"
यादों का मौसम बड़ा बेरहम होता है!!
अहसासों में ठहराव कहाँ
ReplyDeleteयादों में जिन्दगी ही
उलझी जाती है ............
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति, बधाई तो देनी ही पड़ेगी ..
क्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं अगर मुझे थोडा-सा साथ(धर्म और जाति से ऊपर उठकर"इंसानियत" के फर्ज के चलते ब्लॉगर भाइयों का ही)और तकनीकी जानकारी मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ. आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें
ReplyDeleteयादों के सिलसिले, अच्छी कविता के माध्यम से. बहुत सुंदर.
ReplyDeleteमातृदिवस की शुभकामनाएँ