कभी कभी यादों के झरोखों से बचपन के गलियारों में झांकती हूँ तो छुटपन की नजरों में एक धुंधला सा चेहरा नजर आता है .... एक लड़की का ... सांवली रंगत , तीखे नाक नक्श , सादगी से लबरेज , जिसकी दुनिया किताबों में ही उलझी है ... अपनी ३ वर्ष की उम्र पार कर मै फिर थोडा और आगे बढती हूँ तो फिर वही लड़की नजर आती है – बेंइन्तहा खुश – हाथ में एक माला सा – लेकिन कपडे का , जिसमे सोने जैसा रुपया लगा है .... उस उम्र में तो उस माले का मतलब समझ ना सकी लेकिन आज , उम्र के इस पड़ाव में – स्पष्ट समझ पाती हूँ की वह स्वर्ण पदक था जो लखनऊ विश्वविद्यालय में अग्रणी होने के एवज में उन्हें दिया गया था .....
वह लड़की जिसका मै जिक्र कर रही हूँ – मेरी बहुत करीबी – खून के रिश्तों से भी बढकर – मंजू दी उर्फ मंजुला सिंह ,उम्र ४० पार , स्नातकोत्तर ( हिंदी साहित्य ) – लखनऊ विश्वविद्यालय से स्वर्ण पदक विजेता , और आज लखनऊ के ही एक प्रतिष्ठित विद्यालय की उप प्रधानाचार्या ......
बाल मन के खाली कैनवास पर कुछ रंग ऐसे उभरे हैं जो ताउम्र फीके नहीं हो सकते .... जब उनकी शादी हुयी थी .... बहुत रोई थी अपनी मंजू दी के लिए .... गुड़ियों के खेल में आंसू धीरे धीरे सूख रहे थे की एक दिन अचानक घर का दरवाजा खुला और चौखट पर एक खूबसूरत नवयौवना नजर आई .... ठगी सी थी – छुटपन की मै .... भरोसा ही नहीं कर पाई की यह वही सांवली रंगत है ..... सिल्क की साडी , सुर्ख लाल बिंदी , खुले लंबे बाल ... उस रत्न जडित आभा की चमक आज भी आँखों में बिजली सी पैदा कर जाती है .... कोई इतना भी खूबसूरत हो सकता है , बाल मन सोच भी नहीं पा रहा था .... लेकिन आज उस सुंदरता का अर्थ महसूस होता है .... शायद सुहाग की चमक हर औरत को खूबसूरत बना देती है ....
वक्त बढ़ रहा था , मेरी समझ भी विकसित हो चली थी – एक दिन पता चला जीजा जी की नौकरी चली गयी – वे उपसंपादक थे , एक प्रतिष्ठित अखबार के . मंजू दी के घर की व्यवस्थाएं डगमगाने लगी थीं ... जीजा जी मन से टूट रहे थे – साथ ही एक नए मेहमान के आगमन की सूचना ....खुशियाँ मनाई जाएँ या हालत से लड़ा जाये..... पेड़ चाहे कितना भी हरा भरा क्यों ना दिखे , अगर जड़ें सडती हैं तो उसे गिरना ही है ....
उस बाल उम्र में पहली बार मैंने जाना की नारी की ताकत क्या होती है .... एक पत्नी क्या होती है .....एक बहु क्या होती है .....और एक माँ क्या होती है ..... दीदी फौलाद सी अपने पति का सहारा बन के खड़ी थी ... उन पर हुए शब्दों के प्रहार वे खुद झेल रही थीं और उनकी प्रेरणा बन कर उनको हिम्मत दे रही थीं .. सत्यवान - सावित्री की कहानी सुनी थी लेकिन साक्षात् सावित्री को मंजू दी के रूप में ही देखा ...पति कैसा भी हो – सात फेरों के बंधन को अटूट बना कर रखना आसान नहीं होता .... लेकिन वो संघर्ष जी रही थी और खुद को सिद्ध कर रही थी ,,, शादी के बाद अक्सर लड़की मायके को मायने देती है .. लेकिन मंजू दी - सबसे पहले एक बहु थीं ..... एक पत्नी थीं .....( जो आज भी हैं ) और ससुराल के सम्मान के आगे सारे रिश्तों को धराशायी कर रही थीं .... कभी कभी लगता है – अगर आज के दौर में भी नारी के अंदर अहम् की जगह समर्पण ले ले तो ना जाने कितने रिश्ते टूटने से बच जायेंगे . शायद समर्पण तो आज भी जिन्दा है लेकिन चमकती हुयी दुनिया के आवरण में ढक गया है – जो नारी के खुद के स्थापित करने की धुन में अहम् के रूप में ही नजर आता है ....
उन्होंने हालातों से लड़ते हुए स्कूल में पढाना शुरू किया .. नवजात बेटे को संभालना , पत्नी के दायित्वों की पूर्ति , सभी के साथ सामंजस्य बैठाते हुए ... एक नयी शुरुआत की .. एक कमनीय लड़की जिसने सिर्फ किताबों को ही हमजोली बनाया था .... आज वह वे सारे काम कर रही थी जो कल्पना से भी परे था ... हर कार्य में दक्ष – क्या पाक कला – क्या व्यवस्थित घर ... या सामाजिक रिश्तों को बनाना .... उनके जैसे व्यक्तित्व विरले ही मिलेंगे ..आज के दौर में भी ऐसी नारी ,,,, श्रद्धा से सर नतमस्तक हो जाता है .
आदि साहित्य में जिस तरह की आदर्श नारियों का वर्णन है आज के दौर में मंजू दी उसमे खरी उतरती हैं... यही कारण भी है की मै उन पर लिखने की हिम्मत भी कर पा रही हूँ .....
परम्पराओं को तोड़ आगे बढना आज की नारी का दायित्व सा हो गया है ... लेकिन परम्पराओं को बिना तोड़े मर्यादा के साथ संघर्ष का नर्तन एक धर्म युद्ध से कम नहीं है – जो मंजुला दीदी को आज की नारियों से , अलग दैवीय गुण दे देता है ....
मंजू दी का संघर्ष बहुत लंबा रहा – अनवरत रूप से – कभी रिश्तों से , कभी समाज से तो कभी खुद के शरीर से ... पी एच डी करना चाहती थीं , लेकिन शादी हो गयी , कर ना पायीं ...फिर भी एक शिक्षिका बन के कितने ही जीवन रौशन किये ... २०१० बेस्ट टीचर का पुरस्कार उनकी झोली में आया ... साहित्य और दर्शन में उनकी किसी से बराबरी नहीं – महज किताबी ज्ञान नहीं – उन्होंने उसे जिया है जिस कारण वे खुद बा खुद सबसे अलग चमकती हुयी नजर आती हैं ...
पति को संभालना , घर और नौकरी देखना ,साथ ही बच्चों की अच्छी परवरिश और संस्कार देना – आसांन नहीं था , लेकिन उन्होंने इसे सिद्ध कर दिया ....मुझे कहने में बिलकुल संकोच नहीं की उनके जीवन में एक समय ऐसा भी आया था जब उनके घर में दो वक्त की रोटी भी मुश्किल से ही आती थी .... फिर भी वे अडिग थी ....संघर्ष कर रही थीं – किसी के आगे हाथ नहीं फैलाये और कमतर में भी अपनी और अपने परिवार के सम्मान की रक्षा की .
कुछ और भी है जिसको बताए बिना उनका व्यक्तित्व अधूरा है – उनकी बेबाक सोच और सपाट बोली ... जो देखा , जो महसूस किया – तुरंत बोल दिया .. उनके इस स्वाभाव से कितने रिश्ते चोटिल भी हुए लेकिन उनका ये बेबाकीपन उन्हें औरो से अलग भी करता है .
नारियल सी मंजू दी दिखती तो कठोर हैं लेकिन अंदर से उतनी ही मुलायम ...जो जान गया –कभी छोड़ कर जा ही नहीं पाया ... जिस कारण आज भी वह सबके बीच श्रद्धा की पात्र हैं .. दो बेटों की माँ जो लगभग अपने – अपने कैरियर के स्थायित्व की कगार पर हैं ...पति खानदानी खेती संभल रहे हैं और वे खुद ...एक प्रतिष्ठित स्कूल की उप प्रधानाचार्या ....
हमेशा एक सूक्ति सुनती थी – “ जीवन एक संघर्ष है “ – लेकिन सागर सी गहरी, गीली माटी सी सोंधी मंजू दी के जीवन को देखकर यही जाना – की जीवन एक संघर्ष जरूर है जिसका विजयी उद्घोष होना सुनिश्चित है ...!!!!!
प्रियंका राठौर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसंघर्षशील सफल व्यक्तित्व पर कलम चलाने के लिए नमन आपको!
ReplyDeletepriyanka ji bahut sunder .... bahut badiya ...... laajawab kahani subha subha padnye ko mili ..... bahut bahut badye hai aap ko
ReplyDeleteबहुत बढ़िया.....संघर्ष की एक जीती जागती तस्वीर सामने रख दी तुमने.
ReplyDeletesaarthak lekh.
ReplyDeletebina mile bina dekhe maine unko jaan liya ... udaaharan her koi nahin banta . aur jo bante hain unke kadam anukarniy hote hain
ReplyDeleteशानदार
ReplyDeleteऔर
प्रभावी प्रस्तुति ||
प्रेरणादायक !
ReplyDeleteआभार !
बहुत ही अपनी सी लगी मुझे यह पोस्ट...
ReplyDeleteक्या कहूँ?बहुत इस कमेन्ट बॉक्स में लिख के मिटा दे रहा हूँ...
बहुत ही भावुक हो गया हूँ यह पढ़ कर!!!!
सुंदर अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteआपकी मंजू दी के सघर्ष मय जीवन का प्रेरणा दाई सुंदर आलेख नारी जाति संघर्स से नही कतराती,.....
ReplyDeleteमेरी नई रचना.....
नेताओं की पूजा क्यों, क्या ये पूजा लायक है
देश बेच रहे सरे आम, ये ऐसे खल नायक है,
इनके करनी की भरनी, जनता को सहना होगा
इनके खोदे हर गड्ढे को,जनता को भरना होगा,
Very touching.....!
ReplyDeletejindagi har kadam ek nayee jung hai....
ReplyDeletejai baba banaras.....
bhaut hi khubsurat rachna...........
ReplyDeleteachha lga ...es sundar pravishti ke lia ...abhar
ReplyDeleteyou have a good skill of narration..a touching story...keep it up..
ReplyDeleteकभी कभी लगता है ....जीवन एक संघर्ष है
ReplyDeleteबहुत ही शानदार और प्रभावी प्रस्तुति |
कभी कभी लगता है ....जीवन एक संघर्ष है
ReplyDeleteबहुत ही शानदार और प्रभावी प्रस्तुति |