रोज की तरह आज भी उसने जींस और टी-शर्ट पहन रखी थी और अपनी कार घर के भीतर खड़ी करने जा रही थी !तभी उसको दो महिलाओं के स्वर सुनाई पड़े ....
"देखो ! कैसी कुल्टा औरत है.......पति को छोड़ आई , बेचारा क्या ना करता "
"हाँ ! तलाक़ तो देता ही ...."
"ना लाज है ना शर्म है - जींस पहनकर मोडर्न बनी घूमती है ! आँखें तो कभी नम दिखी ही नहीं !!"
"क्या जमाना आ गया है !!........."
नौकर के गेट खोलने से उसकी तन्द्रा भंग हुई और वह गाड़ी लेकर आगे बढ गयी ! उस पल उसके अंदर एक तूफान उठ रहा था ....एक सवाल था---क्या वे सच कह रही थीं ? ?
नहीं ------
उसकी आँखें भी नम होती थीं लेकिन किसी को दिखाने के लिए नहीं !! कहीं एक दर्द उसके अंदर भी था !! शायद आधुनिकता का जामा तो उसके लिए एक भुलावा मात्र था उन यादों से बचने के लिए .............जिसमें सिंदूर व बिंदिया का रंग , साड़ी की महक व चूड़ियों की खनक मौजूद थी !!!!
priyanka rathore
अंतस की पीड़ा इतनी सहजता से उकेर देना बड़ा ही कठिन है !
ReplyDeleteबधाई आपको !
शायद आधुनिकता का जामा तो उसके लिए एक भुलावा मात्र था उन यादों से बचने के लिए .............जिसमें सिंदूर व बिंदिया का रंग , साड़ी की महक व चूड़ियों की खनक मौजूद थी !!!!
ReplyDeleteगहरे भावों से सजी बेहतरीन अभिव्यक्ति ....
बेहतरीन अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteपीड़ा सहजता से व्यक्त हुई है!
ReplyDeleteसार्थक, सटीक और सामयिक प्रस्तुति, आभार.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें , आभारी होऊँगा.
khud ke liye ek bhram
ReplyDeleteजिसमे सिन्दूर बिंदिया का रंग साड़ी की महक चुडिओं की खनक मौजूद थी,..!!!!भाव मय सुंदर आलेख,..
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट -प्रतिस्पर्धा-में आपका स्वागत है,...
suno sab ki...karo mann ki
ReplyDeleteoh ....ye samaj....badhiya prastuti
ReplyDeletebahut sunder likha hai ...
ReplyDeleteभावनाओ की अभिव्यक्ति सही है
ReplyDeleteमनः दशा को अच्छे से उकेरा है. पर किस संधर्भ में है थोडा मुश्किल लग रहा है पता लगाना
आइयेगा मेरे ब्लॉग पे भी
khubsurat bhaavo ki behtreen abhivaykti....
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