Thursday, December 1, 2011

वह...












रोज की तरह आज भी उसने जींस और टी-शर्ट पहन रखी थी और अपनी कार घर   के भीतर  खड़ी करने जा रही थी !तभी उसको दो महिलाओं के स्वर सुनाई पड़े ....
"देखो ! कैसी कुल्टा औरत है.......पति को छोड़ आई , बेचारा क्या ना करता "
"हाँ ! तलाक़ तो देता ही ...."
"ना लाज है ना शर्म है - जींस पहनकर मोडर्न बनी घूमती  है ! आँखें तो कभी नम दिखी ही नहीं !!"
"क्या जमाना आ गया है !!........."



नौकर के गेट खोलने से उसकी तन्द्रा भंग हुई और वह गाड़ी लेकर आगे बढ गयी ! उस पल उसके अंदर एक तूफान उठ रहा था ....एक सवाल था---क्या वे सच कह रही थीं ? ? 


नहीं ------


उसकी आँखें भी नम होती थीं लेकिन किसी को दिखाने के लिए नहीं !! कहीं एक दर्द उसके  अंदर भी था !!  शायद  आधुनिकता  का  जामा तो उसके लिए  एक भुलावा मात्र  था उन यादों से बचने के लिए .............जिसमें सिंदूर  व  बिंदिया का रंग , साड़ी की महक  व चूड़ियों  की खनक  मौजूद  थी !!!! 

priyanka rathore 

12 comments:

  1. अंतस की पीड़ा इतनी सहजता से उकेर देना बड़ा ही कठिन है !
    बधाई आपको !

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  2. शायद आधुनिकता का जामा तो उसके लिए एक भुलावा मात्र था उन यादों से बचने के लिए .............जिसमें सिंदूर व बिंदिया का रंग , साड़ी की महक व चूड़ियों की खनक मौजूद थी !!!!
    गहरे भावों से सजी बेहतरीन अभिव्यक्ति ....

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  3. बेहतरीन अभिव्यक्ति ....

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  4. पीड़ा सहजता से व्यक्त हुई है!

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  5. सार्थक, सटीक और सामयिक प्रस्तुति, आभार.

    मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें , आभारी होऊँगा.

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  6. जिसमे सिन्दूर बिंदिया का रंग साड़ी की महक चुडिओं की खनक मौजूद थी,..!!!!भाव मय सुंदर आलेख,..
    मेरे नए पोस्ट -प्रतिस्पर्धा-में आपका स्वागत है,...

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  7. भावनाओ की अभिव्यक्ति सही है
    मनः दशा को अच्छे से उकेरा है. पर किस संधर्भ में है थोडा मुश्किल लग रहा है पता लगाना

    आइयेगा मेरे ब्लॉग पे भी

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  8. khubsurat bhaavo ki behtreen abhivaykti....

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