मै सीता
कुलवधु मै रघुकुल की
भार्या हूँ राजा राम की ......
आज चाहती हूँ
देखना खुद को
फिर एक बार तटस्थ भाव से -
सर्व समर्पित
सर्व अर्पित
मेरा जीवन
क्या यूँ ही है - व्यर्थ हुआ
सतीत्व और नारीत्व
के संघर्ष में
बुन रही हूँ मै उलझनें
हैं घेरे अनेक सवालों के -
हे मेरे भरतार !
तुम ही हो
मेरे जीवन की धुरी
तुम्ही से सवाल हैं
तुम्ही से जबाब हैं
तुम बिन मेरा
जीना ही निराधार है ....
फिर भी कुछ
कहना है आज
न सोचना तुम
अन्यथा इसको ....
याद है - वो हमारा स्वयंवर
कितने ही दिग्गज आये थे
लेकिन चढ़ी प्रत्यंचा तुमसे ही
और मै अर्धांगनी तुम्हारी कहलाई थी
यह द्रश्य तो था जग उजागर
पर कुछ और भी था जो नहीं था द्रश्य
वो प्रथम नयनों का गोपन
जब तुम बगिया में आये थे
उसी दिन शक्ति से माँगा था तुमको
तभी तुम प्रत्यंचा चढ़ा पाए थे
तुम्हारे स्वप्नों में आधा स्वप्न था मेरा भी
तभी विवाह ये संभव हो पाया था .......
मंत्रोचारण और फेरों के भंवर में
तुम्हारे हर कदम की मै संगिनी थी
वन गमन के मार्ग में भी
कितनी ही ठोकर खायी थीं ..
गर ना होती मै साथ तुम्हारे
क्या हो पाता पुष्ट चरित्र तुम्हारा
ना सुपर्णखा होती ना ही होता रावण
ना होता वह धर्म युद्ध , ना होती वह विजय श्री
दौड़ रही थी रगों में मै बन सकती तुम्हारी
अन्यथा कैसे बनती मर्यादा पुरुषोत्तम राम की कहानी ....
याद है - प्रजा के एक अदने से इन्सान ने
तुमसे अग्नि परीक्षा मेरी रखवाई थी
गर ना देती मै वो अग्नि परीक्षा
सोचा तुमने तब क्या होता
राम राज्य की परिकल्पना ना यूँ
युगों युगों तक पूजी जाती
मै सीता थी , मै सती थी , मै शक्ति थी ,
इसलिए वह परीक्षा मापदंडों पर खरी उतर पाई थी
जानती हूँ -- वह अग्नि मुझको तो ना छू पाई थी
पर वही अग्नि तुमको अन्दर तक झुलसा पाई थी .....
तुम पहले राजा राम थे फिर मेरे भरतार
पर मै - पहले थी भार्या तुम्हारी फिर थी रानी
इसलिए तुम्हारी हर बात पर दिया तुम्हारा साथ
सतीत्व और पत्नी को सिद्ध करते करते
नारीत्व को मै गयी भूल
नारी सम्मान के प्रति
कुछ दायित्व तो हैं मेरे भी
आह ! चली गयी मै
धरती की गोद में
करके तुम्हारा बहिष्कार ......
हे भरतार !
जानते हो -
अब संतुलन सध गया है -
अब तक मै थी तुम्हारे साथ
अब तुम मेरे साथ होगे
हर गमन में मुझको तकोगे
हर पल अग्नि परीक्षा दोगे
दुनिया में मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाओगे
पर अन्दर ही अंदर तुम जलोगे ....
ना मेरे भरतार !!!!
ये ना समझना तुम -
कटघरे में खड़ा करके तुमको
कर रही हूँ मै अभिमान .......
जान लो - तुम से मै हूँ , मुझसे तुम
बिन सिया के राम कहाँ
या राम बिना ये सिया कहाँ .....
तुम थे , तभी समर्पण था मेरा
स्नेह , प्यार , सतीत्व था मेरा
ना तुम होते तो कैसे कहलाती सती राम की
ये बातें तो बस जबाब हैं मेरा
उस नारी को
जो कर रही है सवाल मेरे
सतीत्व और समर्पण पर ...
अग्नि परीक्षा सीता की क्यों
क्यों नहीं परीक्षा राम की ......
मैंने तो दी एक परीक्षा
और कर दिया बहिष्कार तुम्हारा
लेकिन - उसके बाद
जानती हूँ मै ----- बिन मेरे -
सारी परीक्षाएं हैं सिर्फ तुम्हारी
हर पल का जलना
हर पल का घुटना
फिर भी मुस्काना दुनिया के आगे
जो जान सकती है सिर्फ भार्या तुम्हारी
यही बंधन है हम दोनों का
दो पिंड पर एक जान हैं
राम सिया हैं , सिया ही राम हैं
जब जब राम का नाम आएगा
सीता संग ही नजर आएगा
शक्ति हूँ भरतार तुम्हारी
चाहे हो जाएँ कितनी परीक्षा
चाहे हो जाएँ कितने बहिष्कार
हर बार -
पूजे जायेंगे सिया राम साथ ही साथ ......
हे भरतार !
अब शांत हूँ
तृप्त हूँ
कह कर अपनी बात तुम्हें
ना कोई सवाल हैं
ना कोई हैं उलझनें
ना ही व्यर्थ हुआ है मेरा जीवन
तुम थे - तभी मै सती कहलाई
मै थी - तभी तुम्हारी मर्यादा बन पाई
यही सार है हम दोनों का
जो समझती है सिर्फ
भार्या तुम्हारी
भार्या तुम्हारी .........!!!!!!!!
प्रियंका राठौर
सुंदर रचना........बधाई हो
ReplyDeleteमेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है |
बहुत सुन्दर भावप्रणव रचना!
ReplyDeleteप्रियंका जी,..प्रणय भाव की अच्छी प्रस्तुति,...बहुत खूब,.बधाई
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट के लिए -काव्यान्जलि- मे click करे
नारी सब सह कर भी श्रेय दूसरों को ही दे देती है ... अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत बढ़िया.
ReplyDeletebahut hi achhi rachna , per nihsandeh kahin kahin ati hai samarpan satitv ka ... ati kisi baat ki sahi nahi hoti ... agar ati n hui hoti to n sita dharti me samati, n ram aajivan katghare me hote ... samay rahte kuch kahna sahi hota hai...
ReplyDeleteतुम थे - तभी मै सती कहलाई
ReplyDeleteमै थी - तभी तुम्हारी मर्यादा बन पाई
यही सार है हम दोनों का
जो समझती है सिर्फ
भार्या तुम्हारी
भार्या तुम्हारी .........!!!!!!!! इन पंक्तियों में सभी कुछ कह दिया आपने.....
आपका पोस्ट मन को प्रभावित करने में सार्थक रहा । बहुत अच्छी प्रस्तुति । मेर नए पोस्ट 'खुशवंत सिंह' पर आकर मेरा मनोबल बढ़ाएं । धन्यवाद ।
ReplyDeleteउसी दिन शक्ति से माँगा था तुमको
ReplyDeleteतभी तुम प्रत्यंचा चढ़ा पाए थे
तुम्हारे स्वप्नों में आधा स्वप्न था मेरा भी
तभी विवाह ये संभव हो पाया था ..
बार बार पढने को मन करता है ,
अनेकों भाव लिए खुबसूरत रचना
badhiyaa!!
ReplyDeletewow dear bahut accha likha hai :)
ReplyDeleteजबरदस्त!!ऐसी कवितायेँ आप इतनी अच्छी तरह से कैसे लिख लेती हैं?
ReplyDeletetouching soulful poem,
ReplyDeletegehrai se lekhe hui, soch jagrit karne wali..
very nice priyanka !! I am unable to find words for apprication..
ReplyDeleteBut really its a great
Jai SiyaRam
because of this india that is bharat is called The Wonder that was India. It is due to these finer qualities of Hindu culture that Hindu culture is the greatest civilisation on earth. At least people like Ramanujan who wrote 300 ramayans and Prime Minister Manmohan Singh's daughter, leftist and other so called pervert secularist should take a lesson from a large character of Shri Ram and Sita. from sanjay singh lucknow, india
ReplyDeleteबहुत ही शानदार प्रस्तुति प्रियंका जी....दिल छु गई आपकी यह रचना सच ही तो है ऐसे न जाने कितने सवाल है जो नारी के मन में हमेशा ही रहा करते हैं। जो एक आदर्शवादी नारी हमेशा कहना चाहती है मगर समाज की मार्यदाओं के चलते कभी कह नहीं पाती उन सभी सवालों को अपने बखूबी प्रस्तुत किया है आभार ... :)
ReplyDeletebehtreen prastuti
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