एक हुआ निर्मित घट ,
मिलाकर एक एक बूँद को
भरा गया उसमे
जीवन रूपी जल ......
भरता जा रहा था वह,
चलता जा रहा था वह ,
तभी अचानक -
हुआ कैसा अचम्भा ,
आकर कालचक्र ने
किया घट में छिद्र .....
एक एक बूँद लगी रिसने
और हो गया खाली पूरा घट .....
हुआ ख़त्म अस्तित्व घट का
जल के ना होने से ..
जन्मी और ख़त्म हुयी
एक और कहानी
ना जीता कोई , ना कोई हारा
यही अटल शिव है
प्रकृति का .....
यही शाश्वत सत्य है
जीवन और म्रत्यु का ................!!!!!!!
प्रियंका राठौर
badhiyaa
ReplyDeleteपर रिसते घट में न जाने कितने थे अर्थ भरे
ReplyDeleteअर्थ हुआ न बेमानी
मिट्टी में मिलता गया
मृत्यु वरण करते हुए
जन्म को कुछ देता गया ...
शब्दों और ज़ज्बातों का सुंदर अंतर्द्वंद उकेरा ....बहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत ही बढिया।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, बधाई
ReplyDeleteपधारें मेरे ब्लॉग पर भी, आभारी होऊंगा.
बेहद गहन और सुन्दर भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteसुंदर जज्बातों की बेहतरीन प्रस्तुति,...बढ़िया पोस्ट,....
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा।
ReplyDeleteसादर
यही शाश्वत सत्य है
ReplyDeleteजीवन और म्रत्यु का ................!!!!!!!
और यही पर इंसान मजबूर भी है....
सुन्दरता इसे महसूस में करने है...
खूबसूरत...!
बेहतरीन भाव ... बहुत सुंदर रचना......
ReplyDeleteभई वाह! बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबस
कस्म गोया तेरी खायी न गयी
इस पर आपकी भी नज़रे-इनायत हो जाये!
दार्शनिक रचना !!
ReplyDeleteअब तो आपकी तारीफ के लिए शब्द ही नहीं बचे यार ... :) बस इतना ही की बहुत ही बढ़िया, जानदार प्रस्तुति :)
ReplyDeleteनववर्ष की आपको बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteशुभकामनओं के साथ
संजय भास्कर
bahut khoob
ReplyDeleteekdam sahi tarike se vivran kara aapne jeevan aur mratyu ka
mere blog par bhi aaiyega
umeed kara hun aapko pasand aayega
http://iamhereonlyforu.blogspot.com/