एक मौन .....
घेरे हुए है
चारों ओर से
निकलना चाहती हूँ
फिर भी
नहीं निकलती
क्योकि -
इस मौन में
तुम्हारा वजूद
हर ओर से
मुझे आवरण देता है
बचाता है
दुनिया के प्रपंच से ,
झूठे , वाचाल ,
प्रलोभनों से
जो सिर्फ भोगना
जानते हैं .....
कहते हैं ....
नियति चक्र नहीं रुकता
एक जाता है
तो
दूसरा आता है ...
लेकिन -
तुम जाओगे
तभी तो कोई आएगा
तुम तो कभी
गए ही नहीं ....
सुबह तुमसे होती है ,
दिन तुमसे ढलता है ,
साथ तुम्हारे ही चलती हूँ ,
साथ तुम्हारे ही जीती हूँ ,
दिन भर की उधेड़बुन का
हर हाल - रात में
बिस्तर पर करवटें
बदलते वक्त
तुमसे ही कहती हूँ ....
और जब जाती हूँ
घुलने - मिलने
उस दुनिया से -
तुम्हारा नाम ,
तुम्हारा अहसास ,
और -
तुम्हारा वजूद
उठाती हूँ ...
खुद में ढालती हूँ
और तुम्हे
कवच की ओढ़े
दायित्व पूरे कर
आती हूँ ......
कोई गंदगी ,
कोई अहसास ,
मुझे छू भी नहीं पाता है ....
शुची सी मै
गर्व से मदमाती
और ज्यादा
रोशन नजर आती हूँ ......
अब तो तुम हो
मै हूँ ...
और ये मौन ...
हम दोनों के
एकत्व का साक्षी ....
मै बहुत खुश हूँ ....
क्योकि -
अब हम 'एक' हैं ........................!!!!!!!
प्रियंका राठौर
बेहद उम्दा भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteमै हूँ ...
ReplyDeleteऔर ये मौन ...
हम दोनों के
एकत्व का साक्षी ....सब कुछ कह गयी ये पंक्तिया....... बहुत ही खूबसूरती स वयक्त किया है मन के भावो को.......
बहुत सुंदर रचना अच्छी लगी.....
ReplyDeleteप्रियंका जी,..मै पहले से आपका समर्थक हूँ आप भी समर्थक बने तो मुझे खुशी होगी...आभार
new post--काव्यान्जलि --हमदर्द-
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteमौन का वजूद अरण्य सा होता है
ReplyDeleteकोई मन में रमा हो तो मौन मौन-सा नहीं लगता.. हर वक़्त बातें चलती रहती है मौन-से... फिर फर्क हीं नहीं पड़ता कि आसपास कौन है...
ReplyDeleteसुंदर मनोभावों वाली सुंदर कविता... पसंद आई...
बधाई!
समर्पण और प्रेम में डूबे एहसास ...
ReplyDeleteसुंदर रचना ...
बहुत सुन्दर भाव ..
ReplyDeleteऔर ये मौन ...
ReplyDeleteहम दोनों के
एकत्व का साक्षी ....
बहुत सुंदर भाव संजोये है और उनकी अभिव्यक्ति भी बहुत सुंदर .
कोई गंदगी ,
ReplyDeleteकोई अहसास ,
मुझे छू भी नहीं पाता है ....
शुची सी मै
गर्व से मदमाती
और ज्यादा
रोशन नजर आती हूँ ......कोमल और भावपूर्ण .. मन विह्वल हो गया ..
कोई गंदगी ,
ReplyDeleteकोई अहसास ,
मुझे छू भी नहीं पाता है ....
शुची सी मै
गर्व से मदमाती
और ज्यादा
रोशन नजर आती हूँ ......कोमल , भावपूर्ण .. मन विह्वल हो गया ..
बेहद भावपूर्ण भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteप्रियंका..ये एकत्व का भाव यूँ ही कायम रहे और तुम्हें यूँ ही खुशी प्रदान करता रहे .सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeletehum bhee khush hain aapki rachna padh ke!
ReplyDeleteBahut sundar....
ReplyDeleteAntim panktiyan bahut hi laazwaab hai...मै बहुत खुश हूँ ....
क्योकि -
अब हम 'एक' हैं ........................!!!!!!!
Wah, Kya bhaav hai....
सुन्दर!
ReplyDeleteअब तो तुम हो
ReplyDeleteमै हूँ ...
और ये मौन ...
हम दोनों के
एकत्व का साक्षी ....
ak gahan abhivyakti ...badhai Priyanka ji
अच्छी रचना...अंतिम पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगीं.
ReplyDeleteबहुत सार्थक प्रस्तुति, सुंदर रचना,बेहतरीन
ReplyDeletenew post...वाह रे मंहगाई...
आप भी समर्थक बने तो मझे खुशी होगी,....
अब तो तुम हो
ReplyDeleteमै हूँ ...
और ये मौन ...
हम दोनों के
एकत्व का साक्षी ....
...
यही तो एकत्व का चरम ...जहाँ भाषा के लिए शब्दों कि बाध्यता समाप्त हो जाये वहीँ जहाँ मौन ही हमारा सब कुछ हो जाये वहीँ ...वहीँ तो होता है ये एकत्व !!
प्रियंका जी अब तो मेरे पास शब्द कोश भी नहीं बचा आपके लेखन कि तारीफ करने के लिए :)
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