विनती ....... समर्पित थी ...... 'मेरे लिए '..... घर से बिस्तर तक का समर्पण ...... हर हाल में ..... जीवन से मरण तक ...... प्यार था ना ......लेकिन - कमबख्त आखिरी पलों में साथ छोड़ गयी ..... जाते वक्त कह गयी - " बहुत प्यार करती हूँ आपसे .... लेकिन फिर भी जा रही हूँ .....मै खाना बनाती थी और खिलाती थी ....तो आप कहते थे तुमसे अच्छी और सस्ती नौकरानी मिल जाएगी .... जब प्यार करती थी तब कहते थे , तुम्हारे जैसी तो ५०० -५०० रूपये में मिलती हैं .... और जब पूरी तरह समर्पित हो जाती थी ...तो कहते थे - इससे अच्छा तो मै माँ की पसंद की लड़की से शादी कर लूँ .... दहेज़ के साथ साथ काम वाली भी मिलेगी .....शायद आपका प्यार यही होगा ... जो मै ही समझ ना पाई .... लेकिन आप हमेशा मेरी यादों में रहेंगे ....चढ़ती उतरती सांसों की तरह " .....!!!!
वह तो चली गई ... लेकिन मेरे लिए प्रश्न छोड़ गयी ...... रात दिन की तड़प ...... तकलीफ ..... और एक रिसता सा दर्द जो धुओं के छल्लों और नशे के समुन्दर में गोते लगाता हुआ .... पल पल झुलसा रहा है .......मुझे उससे प्यार था की नहीं पता नहीं ..... लेकिन - तब से लेकर आज तक .....हर लड़की में विनती को ढूँढने का क्रम चालू है ..... किसी की बातें उसके जैसी हैं , तो किसी की आँखें , कोई उसके जैसी जंगली है तो कोई उसके जैसी अर्थहीन ..... लेकिन विनती कहीं नहीं है .....वह तो लीन हो गयी .... यादों और जिन्दगी में ऐसी घुली की ..... अब तो बस मै हूँ ....वो है ..... और रोज एक नया चेहरा ........ !!!!!!
प्रियंका राठौर
अब पछताए होत क्या...सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteउफ़ ………सच कितना कडवा होता है ना मगर अब उसमे झुलसने के सिवा बचा भी क्या।
ReplyDeletebahut achcha.
ReplyDeleteदर्द ही दर्द ...और एक इंतज़ार
ReplyDeletebahut sunder .............
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी...
ReplyDeletejanewale phir nahi milte ...
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति भाव पूर्ण बढ़िया रचना,....मै आपके ब्लॉग का समर्थक और नियमित पाठक हूँ किन्तु आप कभी भी मेरे पोस्ट पर नही
ReplyDeleteआई,फिर समर्थक और पाठक बनने से क्या फायदा,....
welcom to--"काव्यान्जलि"--
dard ke sath khubsurat intjaar................
ReplyDeleteफेसबुक पर ज्यादा समय देने के कारण आजकल किताबें पढऩा छोड़ रखा था। बहुत बढिय़ा, जबरदस्त....
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति ||
ReplyDeleteemotional with a message
ReplyDeleteक्या कहूँ यार आप तो निशब्द कर देते हो ... :)
ReplyDeletebhai waah! kya khub likha ,kaee din me kuch naya padne ko mila hai,aap bhai ki paatr hai,bdhai sweekaren.....
ReplyDeleteबहुत अच्छी सुंदर प्रस्तुति,भावपूर्ण अभिव्यक्ति रचना अच्छी लगी.....
ReplyDeletenew post--काव्यान्जलि : हमदर्द.....
मै आपका फालोवर से हूँ,आप भी मुझे फालो करे मुझे आत्मीय खुशी होगी,...
गहरे प्रश्न लिए .... शायद ये खोज निरंतर जारी रहेगी जब तक जीवन है और हमेशा घुटन का एहसास देगी ....
ReplyDeleteबेहतरीन लिखा है ...
Ekangi bhaavon ka prastutikaran sambhav hai par vah satya ke bahut paas hokar bhi saty nahi ho sakta... Aaj samajh aaya ek lekhak ke nitant niji anubhavon par aadharit kisi bhi movie ke director pe lekhak kahani se anyay ka aarop kyon laga baithata hai?... Halanki prastuti fir bhi sarahaneey hai...
ReplyDelete:) thanks... bhushan ji....
Deletethanks to all.....
ReplyDeleteबहुत दृढ़ता से लिखती है प्रियंका जी अच्छा लगा आपको पढ़ना !
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