मै ......, ना -ना नाम नहीं बताना चाहता
वर्ना - जाति , धर्म , संप्रदाय में बाँट दिया जाऊंगा ..
पढना चाहता हूँ , आगे बढ़ना चाहता हूँ ..
जिससे अपने देश - समाज के लिए कुछ सार्थक कर सकूँ
लेकिन - पढ़ ना पाने की मजबूरियां हैं
आर्थिक - सामाजिक बेड़ियाँ हैं
जिससे हाशिये का मै
हाशिये तक ही सीमित रह जाता हूँ ....
सुना है -
आजकल आरक्षण का जिन्न ,
बोतल से बाहर आ गया है ...
क्या मेरी योग्यता और लगन को
ये दानव निगल ना लेगा ...
और -
अदना सा मै -
हाशिये की रेखा पार ही ना कर पाऊंगा......
मेरे कई जानने वाले
इस जिन्न की रेखा में समाते हैं ...
लेकिन - फिर भी
वे मेरे साथ ही रह जाते हैं ...
ऊचाईयों को छू पाना तो स्वप्न सा ही है .....
इस तकलीफ का फंदा
मेरा गला कस रहा है
जिस कारण -
मेरी जुबान को भी शब्दों के पंख लगने लगे हैं ...
कहना चाहता हूँ उस सियासत से ...
उस तबके से ...
जो शान से घोषणाओं का बिगुल बजाते हैं
और हमारे लिए मुश्किलें पैदा कर जाते हैं ....
एक बार सोच के देखो -
स्वार्थपरता से बाहर निकल कर देखो -
मेरे जैसे लोग ...
जहाँ हैं ...
वहीं खड़े हैं , और आगे भी वहीँ खड़े नजर आयेंगें
अगर -
यथार्थ में हमारे लिए कुछ करने का जज्बा है
तो .... टुकड़ों में बाटने का हथियार हम पर मत चलाओ ...
योग्यता को मापदंड बनाओ ...
'आधार ' और 'जनसँख्या रजिस्टर ' से
हमारी आर्थिक पहचान बताओ .....
योग्यता सूची में नाम आने के बाद भी
जब हम फीस देने में सक्षम ना हों
तब आगे बढकर कम लगत की शिक्षा दिलवाओ ....
दफ्तरों में भी योग्यता को आधार बनाओ ...
साथ ही - कुछ और भी अनछुई सी समस्याएं हैं
जिनके कारणों पर चिंतन कर समाधान करवाओ .....
कहते हैं -
बूँद - बूँद से घट भरता है
ईमानदार पहल कर के देखो ......
हमारे जैसे हाशिये के लोगों को आरक्षण की जरूरत नहीं .
हमारा स्तर खुद व खुद सुधर जायेगा ..
साथ ही -हम अपने नाम से मुख्य धरा के साथ जी पायेंगें ......!!!!!!!!
प्रियंका राठौर
आरक्षण देश के लिए अभिशाप है देश में जातिगत आपस की सदभावना को बिगाड़ रहा है,..
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना,बेहतरीन प्रस्तुति new post...वाह रे मंहगाई...
WELCOME TO new post...वाह रे मंहगाई...
ReplyDeleteईमानदार पहल कर के देखो ......
ReplyDeleteहमारे जैसे हाशिये के लोगों को आरक्षण की जरूरत नहीं .
हमारा स्तर खुद व खुद सुधर जायेगा ..
बिलकुल सही कहा आपने।
सादर
अगर -
ReplyDeleteयथार्थ में हमारे लिए कुछ करने का जज्बा है
तो .... टुकड़ों में बाटने का हथियार हम पर मत चलाओ ...
योग्यता को मापदंड बनाओ ...प्रियंका इस करारी चोट को लोग समझें तो परिवर्तन हो ...
मै ......, ना -ना नाम नहीं बताना चाहता
ReplyDeleteवर्ना - जाति , धर्म , संप्रदाय में बाँट दिया जाऊंगा ..
shurwat ki lines ne sama baandh diya
bahut khoob priyanka
बेहतरीन प्रस्तुति.
ReplyDeleteबूँद - बूँद से घट भरता है
ReplyDeleteईमानदार पहल कर के देखो ......
हमारे जैसे हाशिये के लोगों को आरक्षण की जरूरत नहीं .
हमारा स्तर खुद व खुद सुधर जायेगा ..
साथ ही -हम अपने नाम से मुख्य धरा के साथ जी पायेंगें ......!!!!!!!!
बिलकुल सही , ईमानदार पहल की ही आवश्यकता है.
टुकड़ों में बाँट कर रख दिया है ... सटीक और सार्थक लेखन .
ReplyDeletewaah ! priyanka ji.........aapne nabz pakad li desh ke dard ki.........
ReplyDeletejiyo !
सुलगती समस्या पर शानदार रचना ।
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग में भी पधारें ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
गणतन्त्रदिवस की पूर्ववेला पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
ज़िन्दगी को कई तरह से परिभाषित करती सुन्दर कविता
ReplyDeleteशायद यह विडम्बना ही है ,हम ,हमारा समाज शायद खुद से छल कर रहे है ,या तो समझना नहीं चाहते या, न समझने का स्वांग कर रहे हैं / हम इतिहास से सबक नहीं ले रहे , अभी जुमा -जुमा आजाद हुए 7 दशक ही तो हुए हैं , सार्वभौम सोच को विकसित करना,शायद हमारी बुनियादी सोच में नहीं है , अपने दर्द के साथ दुसरे दर्द का भी अनुशीलन होना ही चाहिए / समीचीन पोस्ट /
ReplyDeleteबहुत सुंदर सार्थक सटीक प्रस्तुति,आरक्षण मात्र वोट की राजनीति है,..
ReplyDeleteWELCOME TO NEW POST --26 जनवरी आया है....
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए.....
हाशिये का ''मैं ''....इस देश की कुरीतियों को उजागर करती रचना ...बहुत बढिया
ReplyDeleteसार्थक और सकारात्मक सोच के साथ लिखी राक्स्चना ...
ReplyDeleteआज अवसर प्रदान करने की जरूरत है ... योग्यता को आगे लाने की जरूरत है ...
सशक्त और प्रभावशाली रचना.....
ReplyDeleteसाथ ही - कुछ और भी अनछुई सी समस्याएं हैं
ReplyDeleteजिनके कारणों पर चिंतन कर समाधान करवाओ .....
कहते हैं -
बूँद - बूँद से घट भरता है
ईमानदार पहल कर के देखो ......
हमारे जैसे हाशिये के लोगों को आरक्षण की जरूरत नहीं .
हमारा स्तर खुद व खुद सुधर जायेगा ..
साथ ही -हम अपने नाम से मुख्य धरा के साथ जी पायेंगें ......!!!!!!!!
सोच को झकझोरती सकारात्मक पहल .
बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति|
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें|
saarthak evam sateek lekhan ....
ReplyDeletekuch jeevan ki pahelia hai.... sadiyo se chali aa rahi hai ... sadiyo tak chalegi ya pata nahi.... galat ya sahi kehna kathin hai.. kyunki badalte samay ke sath udeshya badal gaye....
ReplyDeleterachna kaphi achi hai... soch bhi kaphi sarahniya...par in vicharo ko karya mein kaise laye ... prayog kaise ho ye bhi mahatwapurna hai....