गयी थी लाने
उपहार तुम्हारा ....
सामानों की भीड़ में
ढूंढ सकी न कुछ ....
फिर सोचा -
क्यों ना तुमको चाँद ही दे दूँ ,
लेकिन एक चाँद को
दूजे चाँद की जरूरत क्या ....
फिर सोचा -
क्यों ना तुमको सूरज दे दूँ ,
लेकिन तुम्हारे ओज के आगे
उस सूरज की चमक ही क्या ....
फिर सोचा -
क्यों ना तुमको पूरा आसमां ही दे दूँ ,
लेकिन तुम्हारे विस्तार के आगे
उस आसमां की मिसाल ही क्या ....
बहुत सोचा ,
बहुत परखा ,
हर कुछ तुमसे
कमतर था ....
फिर सोचा -
क्यों ना तुमको मै 'तुमको' ही दे दूँ
तुमसे बेहतर भी कुछ है क्या ....
हाँ -
तुमसे बेहतर भी कुछ है क्या ....!!!!
प्रियंका राठौर
फिर सोचा -
ReplyDeleteक्यों ना तुमको पूरा आसमां ही दे दूँ ,
लेकिन तुम्हारे विस्तार के आगे
उस आसमां की मिसाल ही क्या ....
बहुत ,सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,...
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...
लेकिन तुम्हारे ओज के आगे
ReplyDeleteउस सूरज की चमक ही क्या ....
adhbhut hai........
शायद उसके लिए "आपसे" बेहतर तोहफा कुछ ना होता.....
ReplyDelete:-)
बहुत सुंदर रचना.....
बहुत भायी..(with a little disagreement)
अनु
सही कहा उससे बेहतर कुछ नही ………जब सारा संसार उसका बनाया है इसकी सारी सुन्दरता भी उसी की दी है तो उससे सुन्दर और कौन होगा।बहुत सुन्दर शानदार प्रस्तुति।
ReplyDeleteफिर सोचा -
ReplyDeleteक्यों ना तुमको मै 'तुमको' ही दे दूँ
तुमसे बेहतर भी कुछ है क्या ....
हाँ -
तुमसे बेहतर भी कुछ है क्या ....!!!!.... इससे बेहतर कुछ भी नहीं
सुंदर प्रस्तुति,बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति !
ReplyDeleteMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...:गजल...
Behad suder.......
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