कुछ अनकही
अनजानी सी
एक नयी राह पर .......
उन पर इल्जाम लगा बैठी !
फूलों के फेरे में
काँटों में ही
खुद को उलझा बैठी !!
कुछ अनकही
अनजानी सी...........
गलती के
इस नये भंवर में
दिल में शूल चुभा बैठी !
दर्द के इस समन्दर में
खुद को ही डूबा बैठी !!
कुछ अनकही
अनजानी सी
एक नयी राह पर ........!!
प्रियंका राठौर
चलो..कोई बात नहीं प्रियंका...फूलों और काँटों का तो चोली दामन का साथ है...जो रूठ गए हैं वो मान भी जायेंगे ..
ReplyDeleteगलती के
ReplyDeleteइस नये भंवर में
दिल में शूल चुभा बैठी !
दर्द के इस समन्दर में
खुद को ही डूबा बैठी !!
बहुत खूब प्रियंका जी!
सादर
अपनी गलतियों का एहसास जी प्रायश्चित है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत सुंदर...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर शब्द रचना ।
ReplyDeleteराह नई हो तो उलझना स्वभाविक है...इल्जाम लगाना तो जैसे आदत से बन जाती है....और बाद में फिर पश्चताप. स्वभाविक है आपकी रचना.
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