Thursday, September 16, 2010

कुछ अनकही अनजानी सी ...








कुछ अनकही
अनजानी सी 
एक नयी राह पर .......

उन पर इल्जाम लगा बैठी !
फूलों के फेरे में
काँटों में ही
खुद को उलझा बैठी !!

कुछ अनकही
अनजानी सी...........

गलती के
इस नये भंवर में
दिल में शूल चुभा बैठी !
दर्द के इस समन्दर में
खुद को ही डूबा बैठी !!

कुछ अनकही
अनजानी सी
एक नयी राह पर ........!!



प्रियंका राठौर

7 comments:

  1. चलो..कोई बात नहीं प्रियंका...फूलों और काँटों का तो चोली दामन का साथ है...जो रूठ गए हैं वो मान भी जायेंगे ..

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  2. गलती के
    इस नये भंवर में
    दिल में शूल चुभा बैठी !
    दर्द के इस समन्दर में
    खुद को ही डूबा बैठी !!

    बहुत खूब प्रियंका जी!

    सादर

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  3. अपनी गलतियों का एहसास जी प्रायश्चित है

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  4. बहुत सुन्दर भाव अभिव्यक्ति।

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  5. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

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  6. राह नई हो तो उलझना स्वभाविक है...इल्जाम लगाना तो जैसे आदत से बन जाती है....और बाद में फिर पश्चताप. स्वभाविक है आपकी रचना.

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