Friday, December 24, 2010

मौन की भाषा ...







सुनी कभी क्या मौन कि भाषा ....
स्वत: स्फुरित मधुर - मधुर ,
बिन बोले ही सब कुछ बोले ,
भेद जिया के खोल दे !
समझ सको तो समझ लो इसको ,
ये तो दिल कि भाषा है ,
कुछ - कुछ में ही है सब कुछ ,
प्रेममयी जीवन रस धरा है !
सुनी कभी क्या मौन कि भाषा ...
स्वत: स्फुरित ये मौन की भाषा ...
शब्द रहित ये मौन की भाषा .....!!




प्रियंका राठौर

9 comments:

  1. मौन की भाषा सबसे अच्छी होती है :)
    बिना कुछ बोले भी सब बोल देना

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  2. सच्चे प्रेम की भाषा केवल मौन की भाषा ही होती है..सुन्दर प्रस्तुति

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  3. सच ही बहुत मुखरित मौन की भाषा

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  4. मौन की भी अपनी एक विशेषता होती है बहुत कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कह जाती है !अच्छी रचना

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  5. Maun ki bhasha wahi samajh sakta hai jo aapka dhyan rakhe :)

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  6. @कोकिला - सही कहा कोकी तुमने....मौन कि भाषा वही समझ सकता है जो हमे समझे ....

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  7. आप सभी का बहुत बहुत आभार .....

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  8. .......... प्रशंसनीय रचना - बधाई

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  9. प्रियंका जी, जिसने मौन की भाषा सीख ली, उसे कुछ और सीखने की आवश्‍यकता नहीं होती। सुंदर चित्रण, सार्थक रचना।

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    अंधविश्‍वासी तथा मूर्ख में फर्क।
    मासिक धर्म : एक कुदरती प्रक्रिया।

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