सुनी कभी क्या मौन कि भाषा ....
स्वत: स्फुरित मधुर - मधुर ,
बिन बोले ही सब कुछ बोले ,
भेद जिया के खोल दे !
समझ सको तो समझ लो इसको ,
ये तो दिल कि भाषा है ,
कुछ - कुछ में ही है सब कुछ ,
प्रेममयी जीवन रस धरा है !
सुनी कभी क्या मौन कि भाषा ...
स्वत: स्फुरित ये मौन की भाषा ...
शब्द रहित ये मौन की भाषा .....!!
प्रियंका राठौर
मौन की भाषा सबसे अच्छी होती है :)
ReplyDeleteबिना कुछ बोले भी सब बोल देना
सच्चे प्रेम की भाषा केवल मौन की भाषा ही होती है..सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसच ही बहुत मुखरित मौन की भाषा
ReplyDeleteमौन की भी अपनी एक विशेषता होती है बहुत कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कह जाती है !अच्छी रचना
ReplyDeleteMaun ki bhasha wahi samajh sakta hai jo aapka dhyan rakhe :)
ReplyDelete@कोकिला - सही कहा कोकी तुमने....मौन कि भाषा वही समझ सकता है जो हमे समझे ....
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत आभार .....
ReplyDelete.......... प्रशंसनीय रचना - बधाई
ReplyDeleteप्रियंका जी, जिसने मौन की भाषा सीख ली, उसे कुछ और सीखने की आवश्यकता नहीं होती। सुंदर चित्रण, सार्थक रचना।
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अंधविश्वासी तथा मूर्ख में फर्क।
मासिक धर्म : एक कुदरती प्रक्रिया।