Wednesday, December 29, 2010

जीवन और म्रत्यु .....





अजब निराला खेल है
जीवन और म्रत्यु का
क्यों होता है अक्सर
म्रत्यु का पलड़ा भारी !
जीवन है कठिन और
म्रत्यु आसान -
आज वह है
कल नहीं होगा
क्या पता अभी
कुछ पलों में ही
निगल ले कालचक्र उसको
यही तो शाश्वत सत्य है
जीवन का !
अगर है जीवन निश्चित
तो उतनी ही म्रत्यु ध्रुव
फिर क्यों ये अवसाद !
होकर भयाक्रांत
इस खेल से -
नहीं है रुकना !
अगर एक म्रत्यु ही है
कई जीवन ज्योति
तो हाँ स्वीकार है
यह शिव ,
जो है कटु सत्य
शायद -
"सत्यम शिवम् सुन्दरम " .......



प्रियंका राठौर



15 comments:

  1. वास्तव में ऐसा ही तो है जीवन!

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  2. बेह‍तर रचना। अच्‍छे शब्‍द संयोजन के साथ सशक्‍त अभिव्‍यक्ति।

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  3. ...अजब निराला खेल है
    जीवन और म्रत्यु का...... प्रियंका जी बिलकुल सही कहा.

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  4. यह यथार्थवादी रचना बहुत अच्छी लगी!

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  5. aap logo ka bhut bhut dhanybad....shastri ji n sanjay ji....aabhar

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  6. दोनों सत्य है...जीवन भी और मृत्यु भी...
    लेकिन ये भी सही है की दोनों महत्वपूर्ण हैं.

    अटल जी की एक कविता है

    "मौत की उम्र क्या?दो पल भी नहीं
    जिंदगी का सिलसिला आजकल का नहीं
    मैं जी भर जिया, मैं मन से मरुँ
    लौट कर आऊंगा कूच से क्यों डरूं"

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  7. सत्य को कहती अच्छी रचना .

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  8. "सत्यम शिवम् सुन्दरम "

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  9. नव वर्ष 2011
    आपके एवं आपके परिवार के लिए
    सुखकर, समृद्धिशाली एवं
    मंगलकारी हो...
    ।।शुभकामनाएं।।

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  10. जीवन यात्रा बरसों बरस की, मौत फसाना पल भर का.
    अन्तर तो होना ही है.

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  11. Hindi ke asardaar shabdon ka achcha prayog kiya hai aapne....great write-up.

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  12. जीवन है तो मृत्यु भी ...
    आदि है तो अंत भी ...
    बस यही समझ ले तो दुनिया से सारा अवसाद , घृणा , भय , लालच,अहंकार मिट जाए ...!
    प्रेरक दार्शनिक रचना !

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