अजब निराला खेल है
जीवन और म्रत्यु का
क्यों होता है अक्सर
म्रत्यु का पलड़ा भारी !
जीवन है कठिन और
म्रत्यु आसान -
आज वह है
कल नहीं होगा
क्या पता अभी
कुछ पलों में ही
निगल ले कालचक्र उसको
यही तो शाश्वत सत्य है
जीवन का !
अगर है जीवन निश्चित
तो उतनी ही म्रत्यु ध्रुव
फिर क्यों ये अवसाद !
होकर भयाक्रांत
इस खेल से -
नहीं है रुकना !
अगर एक म्रत्यु ही है
कई जीवन ज्योति
तो हाँ स्वीकार है
यह शिव ,
जो है कटु सत्य
शायद -
"सत्यम शिवम् सुन्दरम " .......
प्रियंका राठौर
वास्तव में ऐसा ही तो है जीवन!
ReplyDeleteबेहतर रचना। अच्छे शब्द संयोजन के साथ सशक्त अभिव्यक्ति।
ReplyDelete...अजब निराला खेल है
ReplyDeleteजीवन और म्रत्यु का...... प्रियंका जी बिलकुल सही कहा.
यह यथार्थवादी रचना बहुत अच्छी लगी!
ReplyDeleteaap logo ka bhut bhut dhanybad....shastri ji n sanjay ji....aabhar
ReplyDeleteदोनों सत्य है...जीवन भी और मृत्यु भी...
ReplyDeleteलेकिन ये भी सही है की दोनों महत्वपूर्ण हैं.
अटल जी की एक कविता है
"मौत की उम्र क्या?दो पल भी नहीं
जिंदगी का सिलसिला आजकल का नहीं
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरुँ
लौट कर आऊंगा कूच से क्यों डरूं"
सत्य को कहती अच्छी रचना .
ReplyDelete"सत्यम शिवम् सुन्दरम "
ReplyDeleteनव वर्ष 2011
ReplyDeleteआपके एवं आपके परिवार के लिए
सुखकर, समृद्धिशाली एवं
मंगलकारी हो...
।।शुभकामनाएं।।
जीवन यात्रा बरसों बरस की, मौत फसाना पल भर का.
ReplyDeleteअन्तर तो होना ही है.
yahi to saty hai!
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना...क्या बात है..
ReplyDeleteप्यार का पहला एहसास.......(तुम्हारे जाने के बाद)
Hindi ke asardaar shabdon ka achcha prayog kiya hai aapne....great write-up.
ReplyDeletesatye ko darshati sunder rachna.
ReplyDeleteजीवन है तो मृत्यु भी ...
ReplyDeleteआदि है तो अंत भी ...
बस यही समझ ले तो दुनिया से सारा अवसाद , घृणा , भय , लालच,अहंकार मिट जाए ...!
प्रेरक दार्शनिक रचना !