क्यूँ लगता है
खोने और पाने के बीच ,
खोने का पलड़ा भारी है !
रिश्ता है पर
भूला सा जाता है ,
बूँदें चेहरे पर
ढलक जाती हैं
और
एक साया सा घिरता आता है !
मीठी बातें ,
हंसी ठिठोली
तन्हाई बन जाती हैं !
शायद -
ध्रुव है ,
खोने और पाने के बीच ,
खोने का पलड़ा भारी है !
प्रियंका राठौर
बहुत ही तथ्यपूर्ण रचना.....
ReplyDeleteपसंद आया यह अंदाज़ ए बयान आपका. बहुत गहरी सोंच है
ReplyDeleteअच्छी लगी आपकी कवितायें - सुंदर, सटीक और सधी हुई।
ReplyDeleteमेरे पास शब्द नहीं हैं!!!!
बहुत सार्थक कविता| धन्यवाद|
ReplyDeleteइस खोने में भी पाना है
ReplyDeleteइस जिन्दगी का ये फ़साना है
जब ये समझ जाओ
ना कुछ खोना ,ना कुछ पाना
अच्छा लिखा ,लिखती रहो !
nice post keep it up....
ReplyDeleteमाना कि खोने का पलड़ा भारी है पर कुछ खोकर कुछ पाया भी जा सकता है.उम्मीद नहीं छोडनी चाहिए.
ReplyDeleteजो भी हो आप की इन पंक्तियों में बहुत ही गहरे भाव छिपे हैं.
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ReplyDeleteVery Nice Mem,
ReplyDeleteIt's Poem Touch my Heart Because i know that & i have a experience holder is difference of Lost and found.
Sincerly
R.S.Nagie
Sub-Editor
Meerut Report
&
Treasurer
Pragati Vigyan Sanstha, Meerut(UP)