Monday, January 3, 2011

चुप - चुप - चुप ......






चुप - चुप - चुप , चुप - चुप - चुप
हम तुम दोनों , क्यों हैं चुप ...
सर्द रात की स्याही में ,
कहीं चांदनी छिटक आई है ,
नन्हें - नन्हें तारों बीच ,
कहीं ध्रुव तारे ने आवाज लगाई है ,
अब तो धुंध भी छटने को है ,
फिर भी -
हम तुम दोनों , क्यों हैं  चुप ,
चुप - चुप - चुप , चुप - चुप - चुप ....


छा रही है लालिमा गगन में ,
चिड़ियों ने अपनी तान लगाई है ,
मंदिर के घंटों के बीच ,
कहीं आरती की आवाज आई है ,
अब तो कोलाहल होने को है ,
सूर्य का तेज तपिश बनने को है ,
फिर भी -
हम तुम दोनों , क्यों है चुप ,
चुप - चुप - चुप , चुप - चुप - चुप ....


रंग बिरंगे उपवन में ,
कही कलियों की सुगंध भरमाई है ,
मंद बयार के झोकों बीच ,
कहीं उम्मीद नजर आई है ,
अब तो वक्त बदलने को है ,
खुशियाँ आँगन भरने को हैं ,
फिर भी -
हम तुम दोनों , क्यों हैं चुप ,
चुप - चुप - चुप , चुप - चुप -चुप
चुप - चुप - चुप , चुप - चुप -चुप ..........





३१ दिसम्बर की वह सर्द रात ...जब एक ओर अस्पताल में जीवन और म्रत्यु का संग्राम हो रहा था तो दूसरी ओर नये साल का आगाज था .....तभी उस संग्राम में जीवन का विजयी उद्घोष हुआ ....ऐसे पलों में भावों की अभिव्यक्ति शब्दों में ढल गयी ....जो आप सबके सामने है .....

आप सभी को नव वर्ष मंगलमय हो .....



प्रियंका राठौर



9 comments:

  1. चुप - चुप - चुप , चुप - चुप - चुप ....

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  2. अच्छा विचार प्रवाह है ... चुप-चुप
    नव वर्ष की मंगलकामना।

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  3. अच्छी रचना है -
    शुभकामनाएं -

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  4. ध्वन्यात्मकता ने रचना को बहुत सुन्दर बना दिया है

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  5. अच्छा विचार
    नव वर्ष की मंगलकामना।

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  6. बहुत सुन्दर रचना ! नये साल की बहुत बहुत बधाई दोस्त !

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  7. चुप चुप नहीं बोलकर आपको नव वर्ष की बधाई देंगे
    नव वर्ष की आपको शुभकामनाये

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  8. ईश्वर करे तुह्हारी लेखनी ऐसे ही चलती रहे ,शुभकामनायें !

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  9. बहुत सुन्दर प्रवाहमयी रचना...चुप चुप चुप ....साधुवाद शीलू ..जान सकती हूँ ३१ दिसम्बर को कोंन अस्पताल में था...क्या हुआ था ...

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