टूटते सपनों के साथ
रिश्ते की चिता जलाती हूँ ,
उस सुलगती अग्नि बीच
खुद ही झुलसती जाती हूँ !
उम्मीदों के साथ
इंतजार को मुखाग्नि दे आई हूँ ,
उस जलती चिता बीच
खुद को ही छोड़ आई हूँ !
बुझते ही ज्वाला के
यादों की राख हाथ आनी है
और कांपते हाथों से
बस तर्पण करते जाना है !
हाँ -
टूटते सपनों के साथ ..................!!
प्रियंका राठौर
jeevan ke uljhe hue sandarbhon ko itne suljhe hue shabdon me vyakt karke aapne apni apratim kaavya-pratibha ka parichya diya hai
ReplyDeletedhnyavaaad
क्या शब्द दिए हैं रचना को .... उम्दा रचना प्रियंका ....
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी रचना ...
ReplyDeleteउस जलती चिता बीच
ReplyDeleteखुद को ही छोड़ आई हूँ !
बुझते ही ज्वाला के
यादों की राख हाथ आनी है
और कांपते हाथों से
बस तर्पण करते जाना है !
हाँ -
टूटते सपनों के साथ ..................!!
कितना दर्द उंडेल दिया है छोटी सी रचना में..दिल को छू जाती है..बहुत सुन्दर
ह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना
ReplyDeleteआह बहुत खूबसूरत कविता लिखी मनो दिल निचोड़ कर रख दिया हो.
ReplyDeleteaap ne hamesha ki traha likha tho bahut accha magar bahut kam padhkar laga manno rachna adhuri se hai...magar jittni bhi hai ,hai bahut sach ke karib...ho sake tho ese aur badhiye...
ReplyDelete@pallavi ji- tarpan ke baad kuch bhi shesh nahi bachta pallavi ji...aage badhane ki gunjaish ktatm ho jati hai....dhanybad mere blog pr aane ka...
ReplyDeleteहौसला अफजाई के लिए आप सभी को धन्यवाद .....
ReplyDeleteचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 25-01-2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
dhanybad sangeeta ji....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ........... भावपूर्ण
ReplyDeleteबहुत अच्छे से व्यक्त किया है आपने | यादो का तर्पण आसान नहीं होता ,
ReplyDeleteकितने दर्द से गुजरा होगा कोई
ReplyDeleteदेख मैने खुद ही अपना तर्पण कर लिया
बस इसके बाद अब मेरे पास शब्द खामोश हो रहे हैं।
बहुत प्रभावी भावाभिव्यक्ति..... सुंदर रचना ......
ReplyDeleteमन की पीड़ा का वर्णन। सबको पल भर के लिये खामोश कर दे……नयन नीर छलकने को आतुर हो जाये……सुंदर चित्रण।
ReplyDeleteHriday ko chu gayi aapki rachana.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति, मर्मस्पर्शी ....शुभकामनायें
ReplyDeleteपल्लवी जी,
ReplyDeleteआज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ .....बहुत अच्छा लगा आपका ब्लॉग और पहली ही पोस्ट बहुत शानदार है.....भावो को बहुत सुन्दर तरीके से उजागर किया है आपने.......आगे भी साथ बना रहे इसलिए आज ही आपको फॉलो कर रहा हूँ......शुभकामनायें|
कभी फुर्सत में हमारे ब्लॉग पर भी आयिए- (अरे हाँ भई, सन्डे को भी)
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एक गुज़ारिश है ...... अगर आपको कोई ब्लॉग पसंद आया हो तो कृपया उसे फॉलो करके उत्साह बढ़ाये|
मार्मिक और निराशा से भरा..
ReplyDeleteअगर ये वास्तविकता से जुदा है तो आग्रह है की निराश मत रहिये....
"कभी हो मन अगर व्याकुल तो बस ये याद रखना तुम
कदम रुकने लगे या फिर लगे उत्साह होने गुम
हमसफ़र ना मिले तो ना सही तू रुक ना रस्ते में.
तुझे पाना हो गर मंजिल तो बस गतिशील रहना तुम"
इसी संदर्भ में और मुक्तक आपको यहाँ मिल जायेंगे..
http://swarnakshar.blogspot.com/
सदा मुस्कुराइए...और मुस्कान फैलाइये...
अच्छी रचना
ReplyDeleteइस बार मेरे ब्लॉग में क्या श्रीनगर में तिरंगा राष्ट्र का अहित कर सकता है
प्रियंका जी, आपकी रचनाओं में जीवन के वैयक्तिक अनुभवों और दृश्यों के जो चित्रात्मक ब्योरे हैं, वह जीवन के बहिर्जगत और अंतरंग की त्रासद विडंबनाओं के रू-ब-रू ला खड़ा करते हैं | आपकी अभिव्यक्ति सामर्थ्य का सुबूत इस तथ्य में है कि आपकी कविता विडंबना को बहुत निश्प्रयास होकर छूती है |
ReplyDeleteअपने सपनों की चिता में खुद को ही जलना होता है ... अपना आपा सहना ही कठिन होता है ....
ReplyDeleteपहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ.बहुत अच्छे भाव व बहुत अच्छी अभिव्यक्ति.
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