Tuesday, April 19, 2011

अद्रश्य बंधन की कैद ....






कितनी अजीब
कितनी दुष्कर
अद्रश्य बंधन की कैद
उस लछमण रेखा की तरह 
लाँघ कर  जिसे  वजूद  खो जाता  है 
बिन लांघें  जीवन रीता जाता है ....
कितनी अजीब 
कितनी दुष्कर
अद्रश्य बंधन की कैद .....




प्रियंका राठौर

7 comments:

  1. चंद पंक्तियों में गहन बात कह दी है ...बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  2. प्रिय प्रियंका
    हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।
    ... अच्छी रचना

    ReplyDelete
  3. बहुत ही मार्मिक क्षणिका प्रस्तुत की है आपने!

    ReplyDelete
  4. Ye adrashy bandhan khud ka hi bandhan hota hai ... bar ek kadam ki jaroorat hoti hai ...

    ReplyDelete
  5. acchi rachna hai ...
    adrishya bandhan...

    ReplyDelete