Sunday, May 15, 2011

पत्थर में भी दिल होता है ..........







है कठोर ,
पर है नहीं ,
पत्थर में भी दिल होता है ....
चुभता है जब ,
कभी कोई दर्द का शूल
तब चीर ह्रदय पत्थर का ,
बहती है प्रेमप्लावित जलधारा ...
अंतहीन सी , अविरल , निर्मल
प्रेममयी जलधारा -
हो जाता है सिक्त मरू जीवन का
धुल जाता है कलुष तन - मन का
नवीन भावों के संचार से
हो जाता है जीव भी अंतस का तृप्त ...

है कठोर ,
पर है नहीं ,
पत्थर में भी दिल होता है ..........



प्रियंका राठौर

17 comments:

  1. है कठोर ,
    पर है नहीं ,
    पत्थर में भी दिल होता है ..........

    सच कहा आपने पत्थर में भी दिल होता है.कठोरता तो उसकी विलक्षण सहन शक्ति की परिचायक है.हजारों वार सह कर भी वह दृढ रहता है.

    सादर

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  2. patthar me bhi dil ... hone ko kuch bhi ho sakta hai , ho sakta hai kaanton se bhi phul ki khushboo aaye , hai n

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  3. है कठोर ,
    पर है नहीं ,
    पत्थर में भी दिल होता है ..........

    ज़रूर होता है..बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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  4. सरल एवं सुंदर भाव

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  5. बहुत सुन्दर रचना!
    --
    यह भी देख लीजिए!
    प्यार का पल चाहते पाषाण भी हैं।
    इन पहाड़ों में बसे कुछ प्राण भी हैं।।

    प्रस्तरों में भी हृदय है, प्रस्तरों में भी दया है।
    चीड़ का परिवार, इनके अंक में ही बस गया है।

    गोद में बैठे हुए, किस प्यार से अधिकार से।
    साल के छौने किलोलें,कर रहे दे(देव)-दार से।

    कंकड़ों और पत्थरों के ढेर पर।
    गगनचुम्बी कोण जैसे पेड़ पर।

    सेव, काफल, नाशपाती से,रसीले फल उगे हैं।
    जो मनुज की भूख,निर्बलता मिटाने में लगे हैं।

    मात्र ये प्रहरी नही परित्राण भी हैं।
    इन पहाड़ों में बसे कुछ प्राण भी हैं।।

    पत्थरों में बिष्ट, ओली और टम्टा रह रहे हैं।
    सरलता, ईमानदारी ,मूक चेहरे कह रहे हैं।

    पत्थरों के देवता हैं,पत्थरों के घर बने हैं।
    पत्थरों में पक्षियों के,घोंसले सुन्दर घने हैं।

    पत्थरों में प्राण भी हैं,और हैं, पाषाण भी।
    पत्थरों में आदमी हैं,और हैं भगवान भी।

    मात्र ये कंकड़ नही,कल्याण भी हैं।
    इन पहाड़ों में बसे,कुछ प्राण भी हैं।।
    http://uchcharan.blogspot.com/2009/02/0_8711.html

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  6. बहती है प्रेमप्लावित जलधारा ...
    अंतहीन सी , अविरल , निर्मल
    प्रेममयी जलधारा -
    हो जाता है सिक्त मरू जीवन का
    धुल जाता है कलुष तन - मन का
    नवीन भावों के संचार से
    हो जाता है जीव भी अंतस का तृप्त ...


    bahut acchi rachna....
    good wishes

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  7. सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति!!!

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  8. पाषाण में दिल की परिकल्पना नवीनता लिए हुए है . आभार इस सुँदर रचना के लिए .

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  9. है कठोर ,
    पर है नहीं ,
    पत्थर में भी दिल होता है ..........
    waah..priyanka ji...bahut sundar aebam satik liene...jitni sundar aap dikhti ho utni hi sudar aap likhti bhi ho...badhai

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  10. कठोर मगर प्यारा , चाहने वाला…….. धन्यवाद

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  11. है कठोर ,
    पर है नहीं ,
    पत्थर में भी दिल होता है ...

    बेहतरीन शब्‍द रचना ।

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  12. प्रभावशाली रचना । पत्थर में भी दिल होता है ।

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  13. प्रिय प्रियंका
    है कठोर ,
    पर है नहीं ,
    पत्थर में भी दिल होता है .
    सच कहा आपने पत्थर में भी दिल होता है
    अद्भुत सुन्दर रचना! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है!

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  14. bahut hi khubsurat likha hai apne..

    http://shayaridays.blogspot.com

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