आज फिर से
एक बार......
है वही मंजर
मद्धम मद्धम
टूटती सांसों
में आस है
जीने की कहीं ......
मरू में नीर बिंदु सी ....
पत्थर में ईश सी .....
हर आती और जाती
निशा के संग
स्पर्श करना
इस अहसास से
उस कोमल गात को
क्या जीवन बाकी है .........
है कितना दुष्कर
हर बार एक म्रत्यु
छुअन से पूर्व
फिर भी
स्पर्श करना है
जीना है ...
और बस
जीते जाना है .....
इस उम्मीद में
आज फिर
बच गया जीवन ....
कल का क्या ?
अनिश्चितता से भी परे......
एक इंतजार
दीप की लौ से
डबडबाते जीवन का
या फिर
कालचक्र का ......
अर्थहीन सा यक्ष प्रश्न .....
जिज्ञासा है
पर जान कर भी
अनजान बनने का ढोंग ....
फिर भी –
हर बार --------
वही मंजर
टूटती , मद्धम
सांसों में
आस है जीने की
पत्थर में ईश सी ......
मरू में नीर बिंदु सी .........
जिज्ञासा है
ReplyDeleteपर जान कर भी
अनजान बनने का ढोंग ....
फिर भी –
हर बार --------
अद्भुत,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
स्पर्श करना
ReplyDeleteइस अहसास से
उस कोमल गात को
क्या जीवन बाकी है
बहुत सुन्दर प्रस्तुति |
दर्द में भी जीने की आस |
बधाई ||
fantastically expressed ..
ReplyDeletepoignancy in clearly visible in words :)
प्रिय प्रियंका
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर .....प्रभावित करती बेहतरीन पंक्तियाँ ....
बेहद खूबसूरत आपकी लेखनी का बेसब्री से इंतज़ार रहता है, शब्दों से मन झंझावत से भर जाता है यही तो है कलम का जादू बधाई
वही मंजर
ReplyDeleteटूटती , मद्धम
सांसों में
आस है जीने की
पत्थर में ईश सी ......
मरू में नीर बिंदु सी .........
waah !!!!!
पहली बार पढ रहा हूँ आपको...अच्छा लगा...सुन्दर और गहरे बिचार...
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