हुयी भोर छायी लालिमा
पंछियों की ताल संग
तुमको ही मैं गाती हूँ ........
जस – जस रंगता जाता अम्बर
तस – तस अधरों पर
मधुर मुस्कान बन जाते तुम
कभी कलियों की सुगंध बन
बगिया महकाते जाते तुम ........
साँस - साँस पर है अब अंकन
क्या मैं हूँ और क्या हो तुम
नहीं अंतर अब हम - तुम में
तुम ही मैं हो मैं ही तुम ..........
हुयी रात छायी चांदनी
जुगनू की चम् चम् संग
तुममे ही मैं इठलाती हूँ
ना मैं रुक्मणी ना मैं राधा
मैं तो बस मीरा बन
तुममे ही मैं खोतीं जाती हूँ ......
हाँ –
तुमको ही मै गाती हूँ .......
तुममे ही खोती जाती हूँ .............
प्रियंका राठौर
प्रिय प्रियंका
ReplyDeleteनमस्कार !
यी भोर छायी लालिमा
पंछियों की ताल संग
तुमको ही मैं गाती हूँ .....
दिल को छूते शब्दों के साथ.....बेहतरीन शब्द रचना ।
बहुत ही सुन्दर भावमय करती पंक्तियां ...लाजवाब प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी यह रचना।
ReplyDeleteतुमको ही मै गाती हूँ .......
ReplyDeleteतुममे ही खोती जाती हूँ .............
bahut hi badhiyaa
खूबसूरत शब्दों से सजी हुई सुन्दर रचना!
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत शब्दों के साथ भावो को प्रस्तुत किया है अपने....
ReplyDeleteबढ़िया है...यही प्यार है ..
ReplyDeleteमैं तो बस मीरा बन
तुममे ही मैं खोतीं जाती हूँ ..
प्रेम और भक्ति के बिम्ब लिए सुंदर रचना बधाई
ReplyDeleteAek khubsurt rachna ...prem medubi hui..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावमयी रचना ...
ReplyDeletebeautiful !!!
ReplyDeleteआपके मधुर प्रेम और भक्तिरस में पगे भाव मन को अति प्रिय लगे, प्रियंका जी.
ReplyDeleteशब्दों का सुन्दर संयोजन किया है आपने.
ना मैं रुक्मणी ना मैं राधा
मैं तो बस मीरा बन
तुममे ही मैं खोतीं जाती हूँ ......
हाँ –
तुमको ही मै गाती हूँ .......
तुममे ही खोती जाती हूँ .............
सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.
samarpan ke bhaav ...bahut sundar
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