चली थी ढूँढने
'सुकून' किसी का ......
पर हो गयी
विस्मृत सी ......
कौन है ?
कैसा है ?
है किसका ये नाम ?
जब नहीं जानती
मै ही
तो क्या पाऊँगी
'सुकून' किसी का ......
विचारों और खोज
के मंथन में
गयी नजर तब
आसमान के रंगों पर ,
वो शांत भाव में
ढलता सूरज ,
वो मंदिर के
घंटों की गूँज ,
चिड़ियों की कलरव संग
बच्चों की किलकारियां ,
मीठी - मीठी हवा की ठंडक ,
कहीं दूर से आती
धुन पर पैरों की थिरकन ,
या फिर -
छत पर पड़े पानी
में युहीं छप - छप करना ,
तो कभी बैठे - बैठे
आसुओं की दो बूँद
टपका देना ......
क्या है ये सब
कैसा ये अहसास है -
तब सोचा ,
महसूस किया ,
खुद का खुद में
डूबने का क्रम
'सुकून' ही तो है
कुछ पल के लिए ही सही
लेकिन -
'सुकून' तो है ........
'सुकून' तो है ........
चली थी ढूँढने ............!!!!!!!!!
प्रियंका राठौर
जिन खोजत तिन पावत.....
ReplyDeleteसुंदर रचना ...गहन भाव...
सुकून को तलाशती रचना....
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति...बधाई
ReplyDeletebehad umdaa prastuti
ReplyDeleteखुद का खुद में
ReplyDeleteडूबने का क्रम
'सुकून' ही तो है
कुछ पल के लिए ही सही
लेकिन -
'सुकून' तो है ........
वाह! बहुत खूबसूरत प्रस्तुति है आपकी,प्रियंका जी.
सकून देती हुई व सुन्दर अहसास का बोध कराती.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
विशेष अनुरोध है आपसे.
'नाम जप'पर अपने अमूल्य विचार व अनुभव
प्रस्तुत कर अनुग्रहित कीजियेगा.
सकूँन पहुचती सुंदर पोस्ट..अच्छी लगी,..
ReplyDeleteप्रियंका जी,.फालोवर बन रहा हूँ ..
मेरे नये पोस्ट में स्वागत है ....
khubsurat hai ye man ka manthan....aabhar
ReplyDeleteसुकून अकसर अकेले पन और तनहाई में जाकर ही मिलता है और जिस तलाश कि आपने बात कि है,वास्तव में वो आपके अंदर ही होता है जरूरत है तो सिर्फ ईमानदारी से खुद से पूछने कि....इस ही सुकून पाने कि खोज या मनःस्थिति पर मैंने भी एक ब्लॉग लिखा है समय मिले कभी तो एक बार ज़रूर आयेगा मेरी पोस्ट पर मुझे खुशी होगी .....
ReplyDeletehttp://mhare-anubhav.blogspot.com/