ताड़ पर रखी
वह संदूकची
धूल और जालों में सनी
फिर नजर आई ....
ख्यालों में गोते
लगाने के लिए
चाह हुयी उसे खोलने की
वह संदूकची
यादों को खुद में
समेटे वह संदूकची ....
बामुश्किल -
कापतें हाथों से खीच ,
उतार लायी ..
क्या गर्द हटाऊ
या फिर खोल ही दूँ
या फिर युही
सहेज कर रख दूँ
बापस ताड़ पर .....
उधेड़बुन के
इस भंवर में
संदूकची से आती
कुछ आवाजें
सुनाई दी .....
आह !
कौन है -
कैसे हुआ -
ये करुण आवाजें .....
अब तो खोलना ही है
मुक्त तो करना होगा
उनको - जो बंद हैं
बरसों से इसमें .....
धडकनों को थामे
आहिस्ता - आहिस्ता
खुल रही थी
संदूकची -
आह !
ये क्या -
जो कुछ बहुत
करीने से , सहेजकर
रखा था -
आज बिखरा सा था
टुकड़ों में बँटा सा था
गंध और भभक से
भरा हुआ था
उस गंध के दलदल में
कितने जीवन पनप गए थे
अस्तित्व हीन से
रेंगते हुए कीड़े
जो खुद कारण थे
उस गंदगी के
या -
गंदगी में पनपे थे
कह नहीं सकती
सोचा -
दुर्गन्ध हटाऊ
या फेक दूँ ....
सामने खुली पड़ी
वह संदूकची
गंदगी में लिपटी
अजीब सा मंजर था
उस गंदगी और सड़न बीच
निकलते हुए अहसास
मानसिक वेदनाओं का दौर
लेकिन कुछ बेहतर भी
करुण आवाजें -
मुक्त हो गयी थी
दुर्गन्ध खत्म होने लगी थी
और रेंगते हुए कीड़े
खुद व खुद ना जाने कहाँ
गुम हो गए थे -
अंतस अब शांत था
बहते हुए मोती
गर्द हटा चुके थे .....
वह संदूकची
अभी भी थी
अपने बिखरे व
टूटे फूटे सामान के साथ
लेकिन गंदगी
विलीन हो चुकी थी .....................!!!!!!!!
प्रियंका राठौर
गहन एहसास से भरी संदूकची ... अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteप्रियंका जी,अपनी सुंदर भावनाओ बड़ी खूबशुरती से उकेरा है अपनी
ReplyDeleteइस रचना में,सुंदर पोस्ट ...
मेरे नये पोस्ट 'वजूद'में स्वागत है ....
बहते हुए मोती
ReplyDeleteगर्द हटा चुके थे .....
सुंदर एहसास!
ek sandukchi ... jaal mein lipti zindagi ,nazariya badal jaye to sab saaf hojata hai .
ReplyDeleteखुबसूरत एहसासों से सजी रचना....
ReplyDeleteवास्तविक से बिम्ब!
ReplyDeleteआज 10 - 11 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
____________________________________
बेहद गहन प्रस्तुति मनोभावो को उजागर कर रही है।
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति , बधाई.
ReplyDelete.
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें, आभारी होऊंगा .
गहन विचारों से सजी,एक सन्दूकची जो यह संदेश दे रही है कि नजरिया बादल जाने से ज़िंदगी बदल सकती है और गंदगी में भी साफ सुथरा पन नज़र असकता है बेहतरीन अभिव्यक्ति ....
ReplyDeletebadhiyaa
ReplyDeleteआपके पोस्ट पर आना सार्थक सिद्ध हुआ । पोस्ट रोचक लगा । मेरे नए पोस्ट पर आपका आमंत्रण है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteप्रियंका जी...आपकी लेखनी का जवाब नहीं....निर्जीव में भी जान डाल दिया...बहुत सुंदर...लाजवाब।
ReplyDelete