Monday, April 25, 2011

वह रात .....






थकावट भरी शाम  के बाद एक प्यारी रात का इन्तेजार .....जिसकी आगोश में आते ही जिन्दगी की ताजगी बरकरार होने लगती है , वरना इस भागते - दौड़ते दिन के बंजर में आराम के बीज कहाँ पल्लवित हो सकते है ......कुछ ऐसी ही थी वह रात .....कमरे के अन्दर स्याही सा अँधेरा और उस अँधेरे बीच कहीं खिड़की के कोने से आती हुयी मध्यम रौशनी ......ईश्वरीय आभा का अहसास करा रही थी . हवा की ठंडक और पास के पेड़ आती रात की रानी की खुशबु अनजाने ही स्वर्गलोक का तिलिस्म बुन रही थी , ऐसे में घड़ी की टिक - टिक के साथ ना जाने कब नींद की उड़ान सपनों तक पंहुचा ले गयी ....तभी अचेतनावस्था में - बर्फ सा ठंडा , जाना पहचाना , मासूम स्पर्श महसूस हुआ .....स्पर्श के साथ ही चेतनावस्था जाग्रत होने लगी ....आह ! शरीर बर्फ सा जमता ही जा रहा था - लेकिन उस मासूम की   बंद आँखों में कहीं जीने की तमन्ना हिलोरे ले रही थी , जो उसके चेहरे से साफ़ दिख रही थी .....उस बदहवासी के आलम में कम्बल खोजना रेत की मारीचिका में पानी खोजने जैसा था , एक कमरे से दूसरे कमरे का सफ़र मीलों लम्बा हो गया था . अँधेरा था जो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था ....वक्त बीता - कम्बल में सिमटी हुयी उस जान में तरंगों का संचार हुआ ......और फिर एक नयी सुबह  शह और मात के खेल के साथ - वही आसमान की लालिमा , वही चिड़ियों की कलरव , वही मछलियों की थिरकन ....और फिर वही भागती - दौडती गुनगुनाती हुयी जिन्दगी .... अंधियारी रात बीत चुकी थी ..................!!!!




प्रियंका राठौर

Wednesday, April 20, 2011

माँ की ममता .....





"कैसी होती है माँ की ममता "
प्रश्न है बड़ा कठिन
मगर जबाब की लालसा होती है .....

भुला के प्रसव की पीड़ा को
जब आँचल में समेटती है
वह नवजात शिशु को
एक हाथ में थामें शिशु को
दूजे हाथ से वह संभाले तन को
उस पल का कोई मोल नहीं
हाँ -
ऐसी होती है माँ की ममता
जिसका कोई तोल नहीं ......

बूढी हड्डियों में है ना दम
हाथ पैरों में है अब कम्पन
फिर भी हर दिन हर पल
नातिन को लिए गोद में
अस्पतालों के चक्कर लगाती है
कोई बोले यहाँ दिखा दो
कोई बोले वहाँ दिखा दो
भरे दिल में उम्मीद की आस
यूँही जीवन जीती जाती है ....
उस पल का कोई मोल नहीं
हाँ -
ऐसी होती है माँ की ममता
जिसका कोई तोल नहीं .......

जब नहीं होती है माँ पास में
मौसी ही माँ बन जाती है
दिल से निकली हर आह पर
सीना उसका छलनी होता है
तोड़ दुनिया के नियम कानून सब
वही ढाल बन जाती है
नहीं होती तब परवाह स्वयं की
हर आंसू का हिसाब वो  पूरा चुकवाती है .....
उस पल का कोई मोल नहीं
हाँ -
ऐसी होती है माँ की ममता
जिसका कोई तोल नहीं ......

जब कभी बचपन में
भूख की आग सताती है
पास नहीं जब होता कोई
बुआ ही हाथ अपना बढ़ाती है
चम्मच में भर  चीनी मलाई
प्यार से खुद ही खिलाती है ....
उस पल का कोई मोल नहीं
हाँ -
ऐसी होती है माँ की ममता
जिसका  कोई तोल नहीं ......

जब कभी कमजोर पलों में
भाई बहन संग होती है नोकझोक
कौन है स्वयं की बेटी
कौन है ननद की बेटी
बिना यह महसूस किये
मामी ही सर पर हाथ  फिराती है
छोड़ खुद की भोजन - थाली
गोद उठा कर दुनिया नयी दिखाती है ....
उस पल का कोई मोल नहीं
हाँ -
ऐसी होती है माँ की ममता
जिसका कोई तोल नहीं ......

बहुत कठिन है समझना इसको -
जननी की महानता तो है जग जाहिर
पर पालनकर्ता छिपी हुयी पर्दों में
नहीं नजर आ पाती है ...
दूजे की संतान को
समर्पित भाव से अपना तन - मन देना
यही है सच्ची माँ की ममता
जिसका कोई मोल नहीं
जिसका कोई तोल नहीं .......!!!!!!!





प्रियंका राठौर




Tuesday, April 19, 2011

अद्रश्य बंधन की कैद ....






कितनी अजीब
कितनी दुष्कर
अद्रश्य बंधन की कैद
उस लछमण रेखा की तरह 
लाँघ कर  जिसे  वजूद  खो जाता  है 
बिन लांघें  जीवन रीता जाता है ....
कितनी अजीब 
कितनी दुष्कर
अद्रश्य बंधन की कैद .....




प्रियंका राठौर

Saturday, April 9, 2011

दिल को सुकून ....






बीते हुए लम्हों में
तेरे होने का अहसास
दिल को सुकून देता है ....
यादों के बसेरे में ,
कभी बारिश की रिमझिम में
ख़ुशी और गमों की धूप में
तो कभी तेरी तस्वीरों में
तेरे होने का अहसास
दिल को सुकून देता है ....
स्वप्नलोक की इस नगरी में
रत्न जडित जोड़े में लिपटी
उस सुर्ख लाल आभा का तेज
उन खनकती रुनझुन में
तेरी हंसी की मिठास
तेरे नाम से जुड़े खुद के नाम में
वजूद के स्थायित्व का अहसास
दिल को सुकून देता है .....
बीते हुए लम्हों में
तेरे होने का अहसास
दिल को सुकून देता है ......





प्रियंका राठौर

Tuesday, April 5, 2011

बहा के उनका सामान ......







बहा के उनका सामान दरिया में
सोचा था मुक्त हो जाऊँगी
अहसासों  के दलदल से .
लेकिन यह तो  वह आग है
जो न जलती है ना बुझती है
बस सुलगती जाती है .....
उस जीव की तरह -
जो मुक्त हुआ भी
लेकिन मुक्त हो ना पाया
शरीर के छूट जाने पर भी
मोह में जकड़ा बंधा सा .......




प्रियंका राठौर






Monday, April 4, 2011

कुछ आप बीती -


 
सबसे पहले आप सभी को नवरात्री के शुभ अवसर पर हार्दिक शुभकामनायें .......

अब कुछ अपनी बात :-)

मेरी प्रिय सहेली - सरिता ....(अपने नाम के अनुरूप उसकी हंसी हमेशा बहती ही रहती है ) को १ अप्रैल को माता रानी की क्रपा से पुत्र रत्न की प्राप्ति हुयी ...... लोगों के अनुसार 'मूर्ख दिवस ' पर एक और मूर्ख की बढ़ोत्तरी इस दुनिया में ....१ अप्रैल को पैदा होने के कारण उसका नामकरण 'फूल ' कर दिया गया है ....अब ये आप लोगों की समझदारी पर निर्भर करता है की इसे हिंदी का फूल समझे या अंग्रेजी का  :)
चलिए अब आगे बढते हैं .....
दोस्ती और मौसी होने का दायित्व निभाने मै भी सरिता और फूल से मिलने अस्पताल पहुची ....व्यवहारिक शिष्टाचार के साथ कुछ हंसी मजाक संपन्न हुआ ....खैर सब कुछ अच्छा ही चल रहा था लेकिन कहीं एक कुराफाती मन अन्दर से पेंगें मार रहा था ....."यार जल्दी घर चलो वर्ल्ड कप देखना है - अब इंडिया की इन्निंग आने वाली है " - बस फिर क्या था - सारे दायित्व कोने में  और मै अलविदा की लप्पी - झप्पी  कर  चल दी .

अलीगंज के उस अस्पताल ( पवार क्लिनिक ) में सीढियों की जगह ढलान बना रखी है , फिर क्या था - दिमाग में वर्ल्ड कप के घोडें दौड़ रहे थे - और मै सरपट ढलान पर पैर बढ़ा रही थी ....इतने में धडाम की आवाज आई ....कुछ सेकेण्ड बाद समझ आया ....यार ...ये तो मै ही गिर गयी ....पैर फिसला और गेम ओवर ......
बा - मुश्किल खड़ी हुयी .....कार तक पहुची - ड्राइव  किया  और घर आई - लेकिन इतनी ही देर में सारे चाँद तारे नजर आ गए थे , साथ ही समझ आ गया था - बेटा - अब १-२ महीने की छुट्टी काटो ...फिर क्या था - घर में मम्मी ,पापा , भाई ,भाभी  सभी के चेहरे सचिन - सहवाग के आउट होने से ज्यादा मेरे कारण उतर गए थे . भाई के साथ डॉक्टर के यहाँ पहुची ...x - ray करवाया ...Rt पैर के ankle joint पर २ जगह fracture .....
बड़ी मशक्कत के बाद ४० दिन के लिए प्लास्टर डॉक्टर साहब ने कर दिया .....अब तो मेरी ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं .... 'फूल ' जी ने मेरी झोली में फूल ही फूल भर दिए .....मै भी अब VVIP  पर्सन हो गयी ...सारे काम बंद - classes बंद ,driving  बंद , बस आराम -वह भी ढेर सारा ....पूरी ऐश .....धमाधम फ़ोन काल्स ...देखते ही देखते वर्ल्ड कप की विंनर मै ही हो गयी .अब मै , मेरा लैपि , और मेरी ढेर सारी किताबें साथ -साथ बिस्तर पर ऐश करते है ....जिन्दगी के सारे आराम १-१/२ महीने के लिए बिस्तर पर ... :)


"क्यों गुड है न सर जी "


लेकिन इस पुरे वाकये से मुझे ये समझ आ गया की मेरी फ़ोन नेट्वोर्किंग बहुत उन्नत दिशा में है - बस एक फ़ोन - " भैया - जरा परेशानी में हूँ  किताबें घर पंहुचा देना - पेमेंट घर पर हो जायेगा ".... या फिर दवाएं या अन्य काम सब फ़ोन से निपट जा रहे हैं .....काश अपना सरकारी तंत्र भी इतनी महारथ हासिल कर पता ...चलो जो भी है  सब perfectlly  allright  है ........ :)



प्रियंका राठौर