Monday, November 15, 2010

अश्रु बिंदु ....





दिल ने दी चुपके से मन को दस्तक ,
मन ने सोचा ,समझा और अहसास कर ,
ढाल दिया अपने वजूद को ,
नेत्रों में बनाकर अश्रु बिंदु जल !
आकर हथेली पर अश्रु ने ,
पूछा मुझसे प्रश्न -
"मै तो हूँ तुम्हारा ही अंश -
दिलों की भावना ,
मन की कल्पनाशीलता से ,
निर्मित मूक प्रेम की स्मृति !
फिर आज ऐसा क्या हुआ -
जो तुमने मुझे पृथक किया ?"
प्रश्न का जाल छटपटाहट रूप में
था समक्ष उपस्थित ..
निरुत्तर - उत्तर ही था सामने ..
कहा मैंने उससे -
पृथक होकर भी ,
नहीं किया पृथक तुम्हे ,
मुझसे तुम हो , तुमसे मै,
प्रमाणित अस्तित्व तुम ,
और वेदना हूँ मै !
फिर भी तुम क्यों
नहीं समझ सकते हो ?
मात्र शरीर को छोड़ देने से ,
तुम नहीं हो गए अस्तित्वहीन ,
तथापि अब तो तुम हो ,
और भी करीब ,
यहीं कहीं अहसासों में ,
सांसों में ,
हर क्षण - हर पल
हर क्षण - हर पल !!




प्रियंका राठौर

9 comments:

  1. अच्छी अभिव्यक्ति है.
    मात्र शरीर को छोड़ देने से ,
    तुम नहीं हो गए अस्तित्वहीन ,
    - विजय तिवारी ' किसलय'

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  2. अंतर्द्वन्द की बहुत ही सुन्दर रचना ...

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  3. अहसासों में सांसो में सामीप्य की अनुभूति ,प्रेम की अनुभूति का सुंदर चित्रण अच्छी रचना के लिए बधाई हो प्रियंका जी !
    इस बार मेरे ब्लॉग में ...........उफ़ ये रियेलिटी शो

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  4. मात्र शरीर को छोड़ देने से ,
    तुम नहीं हो गए अस्तित्वहीन ,

    बहुत खूबसूरत प्रियंका ...

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  5. आप सभी का बहुत बहुत धन्यबाद !

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  6. सुन्दर प्रवाहमान रचना ! आपकी लेखनी भी निरंतर चलती रहे यही कामना है

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  7. Bahut hi bhav-pradhan abhivyakti.Ashru vindu ka ek aur roop dekhne ke liye main aapko apne blog par amantrit karata hun. Nice post.

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  8. ansoo bahut kuch kah jate hain ...dard ke ahsas ko kam kar jate hain

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