Tuesday, November 2, 2010

इच्छाओं-कामनाओं से मुक्ति.....

 


ऋषियों-मनीषियों ने मनुष्य की असीम इच्छाओं-कामनाओं को देखा, फिर एक सच्चे पारखी की तरह इस मन को परखा और निर्णय दिया कि मन ही इच्छाओं का केंद्र बिंदु है, उसका जनक और पोषक है। तब उन्होंने दृढ़ निश्चय, दृढ़ विश्वास के साथ यह निर्णीत किया कि मन ही बंधन का कारण है- 'मन एवं मनुष्याणां कारणं बंध मोक्षयो।'' मनीषियों ने इस बंधन से मुक्ति का उपाय भी बताया कि मन को निर्विषय कर देना ही मुक्ति-पथ का बोध है। मन का निरोध ही योग है।
चित्त की चार स्थितियां है-करुणा, मैत्री, मुदिता और उपेक्षा। अपने से कमतर लोगों के प्रति करुणा का भाव, अपने सम स्तरीय के प्रति मैत्री का भाव, जो अपने से वरेण्य है उनके साथ मुदिता का भाव और जो दुष्ट प्रवृत्ति के है उनके प्रति उपेक्षा का भाव, इन स्थितियों को पा लेना ही जीव का लक्ष्य होना चाहिए। यदि चित्त को स्थिर कर लिया जाये तो ही जीव इन स्थितियों को प्राप्त कर पाता है। मन, बुद्धि पर विजय पा लेता है, यही योग है। 'भगवत गीता' में भी इसी आध्यात्मिक उपलब्धि का तुमुल घोष है। भगवान वेदव्यास ने भी 'योग: चित्तवृत्ति निरोध:' की बात कही है। उनके अनुसार व्यापक मन की नकारात्मक चिंतन-झंझा को थामना ही योग है। यहां सकारात्मक एवं लोकोपकारी चिंतन के निषेध की बात नहीं कही गई है, बल्कि केवल इंद्रिय-लोलुप, नकारात्मक एवं मूल्य विनाशक वृत्ति अर्थात् विचारों की झंझा को निरुद्ध करने की बात कही गई है, किंतु निश्चित रूप से यह साधना बहुत कठिन है, इसका वाह्यं-विलास से कुछ भी लेना देना नहीं है। साधक ज्ञान, भक्ति एवं योग के अनवरत अभ्यास से इसकी प्राप्ति करता है। ऐसे मनीषियों को आप्तऋषि कहा गया है। इस साधना का मंच संसार नहीं है। त्रिविध एषणाओं से मुक्त साधक ही इसकी मंजिल तक पहुंचकर आत्मोद्धार एवं जनोद्धार कर सकता है। भले ही हम कबीर, तुलसी आदि न बन सकें, पर अपने इस जन्म में इस दिशा में कदम तो बढ़ा ही सकते है। यदि हमने मन पर थोड़ा संयम रखना सीख लिया तो धीरे-धीरे अभ्यास से मन को निर्विषयी भी बना सकेंगे और चित्त स्थिर होगा।



साभार : दैनिक जागरण

6 comments:

  1. मनुष्य एक ऐसा प्राणी है जो की इच्छायो कामनाओ से बंधा है,इच्छाओ कामनाओ पर विजय पर विजय पाना इतना आसान नहीं है हा इतना जरुर है इच्छाओ कामनाओ को एक सीमा में बांध कर रखा जाये ऐसा प्रयाश किया जा सकता है! परन्तु इच्छाओ कामनाओ के बगैर जिए जाये ऐसी कल्पना करना निरर्थक है !

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  2. लेकिन इच्छाओं व कामनाओ का त्याग बहुत कठिन है श्री मान, बहुत अच्छा लिखा आपने
    sparkindians.blogspot.com

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  3. Achha lekh padhwaya Priyanka.... saargrbhit aalekh ko sajha karne ke liye aabhar

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  4. bahut achha lekh ... 'chit ki chaar stithiyaa ' bahut pasand aaya ... magar baat wo hi hai .. ki chit ko kaabu kaise kiya jaaye ... bahut mushkil hai ... ek aisa kooan hai jo bharta hi nahi ...

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  5. सही बात है इच्छाओं और कामनाओं को काबू करना कठिन है ...लेकिन नकारात्मक चिंतन को तो काबू किया जा सकता है .....

    यहां सकारात्मक एवं लोकोपकारी चिंतन के निषेध की बात नहीं कही गई है, बल्कि केवल इंद्रिय-लोलुप, नकारात्मक एवं मूल्य विनाशक वृत्ति अर्थात् विचारों की झंझा को निरुद्ध करने की बात कही गई है,

    यह कठिन जरुर है पर असाध्य नहीं ......आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद !

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  6. vastav me kamnaaon par kabu karna kathin hi nahi duSKAR SA PRATEET HOTA HAI.

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