जमघट है आज शब्दों का
किसे उठाऊ किसको छोड़ू
लेखन के इस मेले में
नहीं छूटता मोह लेखनी का ...
कर्म स्थली बुला रही है
स्वप्न अपना दिखा रही है ...
फिर भी -
जमघट है आज शब्दों का
किसे उठाऊ किसको छोड़ू
भ्रम के इस जाल में
नहीं छूटता मोह लेखनी का ...
नियति यूँ उलझा रही है
राग अपना सुना रही है
फिर भी -
जमघट है आज शब्दों का ............
प्रियंका राठौर
एक लेखक के दिल से :)
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteप्रियंका ji,
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति है एक अंतरद्वंद्ध की .....प्रशंसनीय |
very good..bahut bakhubi se aapne writer block condition ko sabdo ke ukera hai...
ReplyDeleteये शब्द ही आपको नहीं छोड़ेंगे , आप सोते रहो ये उठा लेंगे ....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
shabdo ki jamghat achchhi lagi...:)
ReplyDeleteachha likha hai .likhti rahen.
ReplyDeleteप्रियंका जी
ReplyDelete........ अच्छी कविता है बधाई !
अभिव्यक्ति का यह अंदाज निराला है. आनंद आया पढ़कर.
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