Tuesday, March 22, 2011

जमघट है आज ......







जमघट है आज शब्दों का
किसे उठाऊ किसको छोड़ू
लेखन के इस मेले में
नहीं छूटता मोह लेखनी का ...
कर्म स्थली बुला रही है
स्वप्न अपना दिखा रही है ...
फिर भी -
जमघट है आज शब्दों का
किसे उठाऊ किसको छोड़ू
भ्रम के इस जाल में
नहीं छूटता मोह लेखनी  का ...
नियति यूँ उलझा रही है
राग अपना सुना रही है
फिर भी -
जमघट है आज शब्दों का ............





प्रियंका राठौर  

9 comments:

  1. एक लेखक के दिल से :)

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  2. प्रियंका ji,

    शानदार प्रस्तुति है एक अंतरद्वंद्ध की .....प्रशंसनीय |

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  3. very good..bahut bakhubi se aapne writer block condition ko sabdo ke ukera hai...

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  4. ये शब्द ही आपको नहीं छोड़ेंगे , आप सोते रहो ये उठा लेंगे ....
    बहुत बढ़िया

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  5. प्रियंका जी
    ........ अच्छी कविता है बधाई !

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  6. अभिव्यक्ति का यह अंदाज निराला है. आनंद आया पढ़कर.

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