अहसास कोई जिन्दा है कहीं ....
आज भी सिहर जाती है सांसें
याद कर उस मंजर को ,
वह निढाल - ठूठ सी नारी -
छाती से चिपकाये नवजात शिशु को
गुहार लगती हुयी अपनों से -
कोई तो दे दो बाबू को जीवन
कोई तो देदो नाम बाबू को ...
दर्द उस चीत्कार का
गूंजता है आज भी कानों में कहीं ....
अनगिनत तारों में टूटते हुए तारे सी
वह ब्याही - फिर भी अनब्याही सी नारी
उम्मीद लगाती हुयी खुद से
टूटती सांसों में ढूढ़ती बाबू को
सिसकती , खिसटती , भागती जाती वह ...
छाती से चिपकाये नवजात शिशु को ....
जिन्दगी की उस स्याही का
बदरंग खेल नजर आता है आज भी कहीं ....
नियति का यह चक्र
क्या रुकेगा कभी ..
हो जाती है कितनी ही कोख बंजर
अपनों में अपनों को ढूंढ़ ढूंढ़ कर
खोखली , सुलगती , झुलसती , बेमानी सी जिन्दगी
वक्त के इन थपेड़ों में
क्या -
अहसास कोई जिन्दा है कहीं .............
प्रियंका राठौर
जिंदगी की डगर में तो अब एहसासों का कोई जगह ही नहीं रह गया.....बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteZindgi ki is dagar me kese rahga ahsas jinda..
ReplyDeleteJab admi sauda karta h apni hi atma ka..
Wo kese dega kisi babu ko zindgi..
Jo bechke apni atma zeeta ho zindgi.
यही हमारी संवेदनहीनता का प्रतीक है सुन्दर भाव, बहुत सुन्दर , बधाई तो कम है |
ReplyDeleteमार्मिक प्रस्तुति ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर,
ReplyDeleteVivek Jain vivj2000.blogspot.com
प्रियंका जी,
ReplyDeleteसुभानाल्लाह......कितना मार्मिक चित्रण है......सलाम है इस पोस्ट के लिए....बेहतरीन....लाजवाब
दिल को छू गई आपकी यह रचना...
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteMan ko chhu jane wale bhav.
ReplyDelete---------------
जीवन की हरियाली के पक्ष में।
इस्लाम धर्म में चमत्कार।
ज़िंदगी का कड़वा सच बहुत ही खूबसूरत अंदाज़ मे पेश किया है आप ने शुभकामनायें ....
ReplyDeletegar mile koi ehsaas to kahna
ReplyDeleteapne ehsaason ke akelepan se shikayat hai hamen
खूबसूरत अंदाज़ मे पेश किया है आप ने
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...
ReplyDeleteवाह! बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteजैसे जैसे इंसान मशीन होता जा रहा है एहसास मरते जा रहे हैं ... बहुत संवेदनशील लिखा है ...
ReplyDeleteजिन्दगी और दिल दोनों को छु गयी रचना ....
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