Monday, July 11, 2011

तुममे ही.....





हुयी भोर छायी लालिमा
पंछियों की ताल संग
तुमको ही मैं गाती हूँ ........
जस – जस रंगता जाता अम्बर
तस – तस अधरों पर
मधुर मुस्कान बन जाते तुम
कभी कलियों की सुगंध बन
बगिया महकाते जाते तुम ........
साँस - साँस पर है अब अंकन
क्या मैं हूँ और क्या हो तुम
नहीं अंतर अब हम - तुम में
तुम ही मैं हो मैं ही तुम ..........

हुयी रात छायी चांदनी
जुगनू की चम् चम् संग
तुममे ही मैं इठलाती हूँ
ना मैं रुक्मणी ना  मैं राधा
मैं तो बस मीरा बन
तुममे ही मैं खोतीं जाती हूँ ......
हाँ –
तुमको ही मै गाती हूँ .......
तुममे ही खोती जाती हूँ .............



प्रियंका राठौर

 

13 comments:

  1. प्रिय प्रियंका
    नमस्कार !
    यी भोर छायी लालिमा
    पंछियों की ताल संग
    तुमको ही मैं गाती हूँ .....

    दिल को छूते शब्‍दों के साथ.....बेहतरीन शब्‍द रचना ।

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  2. बहुत ही सुन्‍दर भावमय करती पंक्तियां ...लाजवाब प्रस्‍तुति ।

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  3. बहुत अच्छी लगी यह रचना।

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  4. तुमको ही मै गाती हूँ .......
    तुममे ही खोती जाती हूँ .............
    bahut hi badhiyaa

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  5. खूबसूरत शब्दों से सजी हुई सुन्दर रचना!

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  6. बहुत ही खुबसूरत शब्दों के साथ भावो को प्रस्तुत किया है अपने....

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  7. बढ़िया है...यही प्यार है ..
    मैं तो बस मीरा बन
    तुममे ही मैं खोतीं जाती हूँ ..

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  8. प्रेम और भक्ति के बिम्ब लिए सुंदर रचना बधाई

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  9. बहुत सुन्दर भावमयी रचना ...

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  10. आपके मधुर प्रेम और भक्तिरस में पगे भाव मन को अति प्रिय लगे, प्रियंका जी.
    शब्दों का सुन्दर संयोजन किया है आपने.


    ना मैं रुक्मणी ना मैं राधा
    मैं तो बस मीरा बन
    तुममे ही मैं खोतीं जाती हूँ ......
    हाँ –
    तुमको ही मै गाती हूँ .......
    तुममे ही खोती जाती हूँ .............

    सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.

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