Saturday, December 3, 2011

जीवन....




मुट्ठी की फिसलती रेत सा
जीवन छुटा जाता है ,
बंधने की कोशिश में
बंधन ही बनता जाता है !
दीपक की लौ सा जलता - बुझता
रंगों बीच स्याही सा ,
जीवन बीता जाता है !
माँ की सूनी कोख सा,
विधवा के हाथ सिन्दूर सा,
जीवन रीता जाता है !
बंधने की कोशिश में
बंधन ही बनता जाता है........!!






प्रियंका राठौर

21 comments:

  1. बांधने की कोशिश में
    बंधन ही बनता जाता है ...सही है,प्रियंका..अक्सर यूँ ही होता है

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  2. bahut khub ji wah .............. kya baat hai

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  3. बंधने की कोशिश में
    बंधन ही बनता जाता है........!!


    वाह! बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति है आपकी,प्रियंका जी.

    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.

    आपका हार्दिक स्वागत है.

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  4. मुट्ठी की फिसलती रेत सा
    जीवन छुटा जाता है ,
    बंधने की कोशिश में
    बंधन ही बनता जाता है !

    badi sahi baat...
    sundar...

    www.poeticprakash.com

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  5. यही है जीवन का सच …………हाथ से फ़िसले उससे पहले संवारना शुरु करना होगा।

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  6. और रिक्त होता जाता है....

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  7. बंधने की कोशिश में
    बंधन ही बनता जाता है........!!

    ...बहुत भावपूर्ण सुंदर प्रस्तुति..

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  8. बढ़िया प्रस्तुति |
    निराला अंदाज |
    बधाई ||

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  9. pRIYANKA JI,

    इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें.

    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें, आभारी होऊंगा .

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  10. माँ की सूनी कोख सा,
    विधवा के हाथ सिन्दूर सा,
    जीवन रीता जाता है !
    बंधने की कोशिश में
    बंधन ही बनता जाता है........!bahut khub.

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  11. वाह...बेजोड़ भावाभिव्यक्ति...

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  12. आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा दिनांक 05-12-2011 को सोमवारीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ

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  13. sachchai ko bayaan kar rahi ye kavita...badhiya

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  14. यह बंधन तो प्यार का बंधन है जन्मो का संगम है सूरज कब दूर गगन से कब दूर बहार चमन से .... :-)

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  15. मैं दिनेश पारीक आज पहली बार आपके ब्लॉग पे आया हु और आज ही मुझे अफ़सोस करना पद रहा है की मैं पहले क्यूँ नहीं आया पर शायद ये तो इश्वर की लीला है उसने तो समय सीमा निधारित की होगी
    बात यहाँ मैं आपके ब्लॉग की कर रहा हु पर मेरे समझ से परे है की कहा तक इस का विमोचन कर सकू क्यूँ की इसके लिए तो मुझे बहुत दिनों तक लिखना पड़ेगा जो संभव नहीं है हा बार बार आपके ब्लॉग पे पतिकिर्या ही संभव है
    अति सूंदर और उतने सुन्दर से अपने लिखा और सजाया है बस आपसे गुजारिश है की आप मेरे ब्लॉग पे भी आये और मेरे ब्लॉग के सदशय बने और अपने विचारो से अवगत करवाए
    धन्यवाद
    दिनेश पारीक

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  16. प्रियंका जी,
    बंधन एक कड़ी है कड़ी से कड़ी जुड़ने पर बंधन बन जाता है...बेहतरीन पोस्ट,,,,बधाई

    मेरे नए पोस्ट पर आइये..आज चली कुछ ऐसी बातें, बातों पर हो जाएँ बातें

    ममता मयी हैं माँ की बातें, शिक्षा देती गुरु की बातें
    अच्छी और बुरी कुछ बातें, है गंभीर बहुत सी बातें
    कभी कभी भरमाती बातें, है इतिहास बनाती बातें
    युगों युगों तक चलती बातें, कुछ होतीं हैं ऎसी बातें

    आपका इंतजार है....

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