Sunday, October 31, 2010

अब तो दर्शन देदे कान्हा ......





अब तो दर्शन देदे कान्हा
गयी हार मै पंथ निहार के !
ढूंढा तुझको वन उपवन में ,
ताल सरोवर , घर - आंगन में ,
पूछ - पूछ कर हर आहट से ,
भाग रही , पीछे परछाई के !
अब तो दर्शन देदे कान्हा .......
अंखियों में है अश्रु धरा ,
सांसों में है प्रीत की ज्वाला ,
तन है गीला , मन भी गीला ,
अधरों पर बस तेरा नाम रे !
अब तो दर्शन देदे कान्हा
गयी हार मै पंथ निहार के !!



प्रियंका राठौर

4 comments:

  1. अपने ही रंग में रंग दे चुनरिया......
    जय श्री कृष्ण!
    आशीष
    ----
    पहला ख़ुमार और फिर उतरा बुखार!!!

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  2. सुंदर रचना शब्दों का उचित चयन कविता की सार्थकता को बढाता है ! इसे भी पड़े .......कहना तो पड़ेगा

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