Tuesday, April 5, 2011

बहा के उनका सामान ......







बहा के उनका सामान दरिया में
सोचा था मुक्त हो जाऊँगी
अहसासों  के दलदल से .
लेकिन यह तो  वह आग है
जो न जलती है ना बुझती है
बस सुलगती जाती है .....
उस जीव की तरह -
जो मुक्त हुआ भी
लेकिन मुक्त हो ना पाया
शरीर के छूट जाने पर भी
मोह में जकड़ा बंधा सा .......




प्रियंका राठौर






7 comments:

  1. बहा के उनका सामान दरिया में
    सोचा था मुक्त हो जाऊँगी
    अहसासों के दलदल से .
    लेकिन यह तो वह आग है
    जो न जलती है ना बुझती है
    बस सुलगती जाती है .....
    bahut hi badhiyaa

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  2. प्रिय प्रियंका
    बहुत सुंदर भावों को सरल भाषा में कहा गया है... अच्छी रचना

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  3. खूबसूरती से लिखे एहसास ...कहाँ हो पाता है मुक्त कोई ..

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  4. आखिरी पंक्तियों की उपमा दिल को छू लेने वाली है......यतार्थ परक है ये पंकितियाँ...प्रशंसनीय |

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  5. खूबसूरती से लिखे एहसास, अच्छी रचना

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  6. बहा के उनका सामान दरिया में
    सोचा था मुक्त हो जाऊँगी
    अहसासों के दलदल से .
    लेकिन यह तो वह आग है
    जो न जलती है ना बुझती है
    बस सुलगती जाती है .....

    बहुत सारगर्भित बात कह दी आप ने
    बहुत सुन्दर
    बहुत - बहुत धन्यवाद

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  7. जीवन की सच्चाई यही है !
    सुन्दर अभिव्यक्ति !

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