काश !
काश !
तुम भी वही होते
जो मै हूँ ....
जीते एक साथ
चलते एक साथ
सुख - दुःख बांटते एक साथ
लेकिन -
सब अलग है
टुकड़ों सा बँटा बँटा सा
नदी के दो किनारों की
तरह .....
जो क्षितिज पर
दिखते तो साथ हैं
पर बहुत दूर हैं .......
काश !
तुम भी वही होते
जो मै हूँ .....
प्रियंका राठौर
is kaash me kitni sari sambhawnayen hain...
ReplyDeleteकाश !
ReplyDeleteतुम भी वही होते
जो मै हूँ .....
बहुत बढ़िया।
सादर
काश !
ReplyDeleteतुम भी वही होते
जो मै हूँ .....
सुन्दर परिपक्व रचना, शायद सभी के दिलों की बात कह रही है
बहुत ही भावप्रणव रचना!
ReplyDeleteकाश !
ReplyDeleteतुम भी वही होते
जो मै हूँ .....
मैं तो बस इन्ही चार शब्दों में खोकर रह गया....
rishto ki sachchai banya kar diya aapne mam.,,,,,
ReplyDeleteकाश !
ReplyDeleteतुम भी वही होते
very nice post , aabhaar
खूबसूरत भाव ..अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteप्रियंका....सुन्दर भावों से पूर्ण रचना...पर,यह भी सत्य है...एक कटु सत्य जीवन का...कि कई बार दो लोग साथ तो होते हैं ...साथ चलते हैं...रेल की पटरियों की तरह ....."सेतु" हर पे संभव हैं...है न ?
ReplyDeleteखुद को तलाश लेने का सफ़र अभी जारी है ........
ReplyDeleteभिक्षाटन करता फिरे, परहित चर्चाकार |
ReplyDeleteइक रचना पाई इधर, धन्य हुआ आभार ||
http://charchamanch.blogspot.com/
उफ्फ्फ !!!! ये काश भी न...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर कविता...
बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
bahut khoobsurat ,komal ahsaas dilati hui kavita.
ReplyDeletebehtreen abhivaykti....
ReplyDeleteबहुत देर से आपकी कविताये पढ़ रहा हूँ , आप बहुत अच्छा लिखती है , ये कविता " काश " दिल को छु गयी है ..
ReplyDeleteआभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html