कुछ साल पहले हुआ करते थे
भूरे , चीनी , गोला , फुसरा और
न जाने कितने ...
हर एक की उच्छ्र्लंख उड़ान
मदमस्त बना जाती थी
काली - काली , लाल - लाल ,गोल - गोल
मटकती हुयी आँखें -
करती थीं उनके प्यार का इज़हार
होते हुए बहुत दूर
फिर भी बहुत करीब थे
क्या कहते थे वे -
क्रियाओं से समझ लेती थी .....
एक - एक रंग जीवन का
एक - एक साज जीवन का
उनसे ही था
फिर अचानक एक दिन -
चले गए वे ना जाने किस दिशा को ,
ना लौटकर आने के लिए ....
समष्टि बदली रंगहीन व्यष्टि में
टूटे साज ना जुड़ने के लिए .....
समय चक्र बढता गया -
एक बार फिर आया कोमू
चंचलता का ओढ़े दुशाला
नित नए रंगों में जीवन सजाता
फुदक फुदक कर मन बहलाता
उसकी क्रियाहीन क्रियाओं ने
जब दे दी दिल में दस्तक
उस पल आया एक जाना अनजाना रोष
चला गया वह भी ना जाने किस दिशा में .....
सपने टूटे , बिखरे रंग
एक एक कर आये कितने
और चले गए ....
सतत मानवीय प्रतिक्रिया से
करीब उनके रहते हुए भी
ना कर सके शामिल उन्हें जीवन में .....
सोचा -
नियति का यह भी है एक स्वरूप
किसी के जाने से पल नहीं थमता ....
लेकिन वह मूक प्रेम हो गया अमर
दिल के किसी कोने में
आता है उभर कर सामने
पल पल नयी टीस के साथ ....
कुछ साल पहले हुआ करते थे
भूरे , चीनी , गोला , फुसरा और
न जाने कितने ..........!!!!!!!!!!
प्रियंका राठौर
बहुत कुछ विलुप्त होता जा रहा है ... अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteसही कहा आपने...
ReplyDeleteindeed very true
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeletevery nice....
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना....
ReplyDeleteप्रियंका
ReplyDeleteआपने सही कहा
नियति का यह भी है एक स्वरूप
किसी के जाने से पल नहीं थमता ....
लेकिन वह मूक प्रेम हो गया अमर
.....बहुत बढ़िया पोस्ट आभार आपका !
बहुत सुंदर भावों से सजी रचना....
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 11 - 08 - 2011 को यहाँ भी है
ReplyDeleteनयी पुरानी हल चल में आज- समंदर इतना खारा क्यों है -
बहुत सुन्दर रचना , बहुत खूबसूरत प्रस्तुति
ReplyDeleteबेहतरीन शब्द रचना ।
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया।
ReplyDeleteसादर
shaandaar...
ReplyDeletebahut si cheezen kho gaee hai...
बहुत सुन्दर भाव्।
ReplyDeleteकुछ साल पहले हुआ करते थे
ReplyDeleteभूरे , चीनी , गोला , फुसरा और
न जाने कितने ...
बहुत सुन्दर भावप्रद रचना। दिल में एक टीस सी उठने लगी पढ़ कर।
फिर अचानक एक दिन -
चले गए वे ना जाने किस दिशा को ,
ना लौटकर आने के लिए ....
समष्टि बदली रंगहीन व्यष्टि में
टूटे साज ना जुड़ने के लिए .....
समय चक्र बढता गया -
आना जाना क्रम जीवन का..
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना..
ह खूटा जाता है पर जीवन चलता रहता है फिर भी ... विडंबना है ...
ReplyDeleteचले गए वे ना जाने किस दिशा को ,
ReplyDeleteना लौटकर आने के लिए ....
किसी के जाने से पल नहीं थमता ....
लेकिन वह मूक प्रेम हो गया अमर
दिल के किसी कोने में
आता है उभर कर सामने
पल पल नयी टीस के साथ ....
कुछ साल पहले हुआ करते थे
भूरे , चीनी , गोला , फुसरा और
न जाने कितने ..........!!!!!!!!!!
hriday ke bhitar janmii vythaa kaa hridaysprshi chitran .badhaaii