Tuesday, September 6, 2011

सन्नाटा....





रात के सन्नाटे को
चीरती हुयी यादें
गोधुलि की तरह
हाँ और ना के बीच में
अँधेरा ही दे जाती है !
पल -पल का इन्तेजार था
दुःख में भी
सुख का अहसास था
एक अनमोल मुक्ताहार था
फिर भी ना जाने क्यों आज
तड़पन ही नजर आती है
रात के सन्नाटे को
चीरती हुयी यादें बबंडर की तरह
जीवन ही डुबो जाती हैं !!


प्रियंका राठौर

14 comments:

  1. उदास करती नज़्म .. भावों को बखूबी लिखा है ..

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  2. भावपूर्ण सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  3. रात के सन्नाटे को
    चीरती हुयी यादें
    गोधुलि की तरह
    हाँ और ना के बीच में
    अँधेरा ही दे जाती है !
    बहुत खूब लिखा है आपने, आपकी इन पंक्तियों को पढ़कर अनायास ही मन में कुछ शब्द घूमने लगे हैं। ....

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  4. भावमय करते शब्‍दों के साथ गजब का लेखन ...आभार ।

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  5. रचा जाता है बहुत कुछ- कला और भाव -पक्ष की , सीमाओं के बाहर भी , भाव -पूर्ण। रचा जाता है बहुत कुछ- सार्थक ध्वनि समूह के बिना भी , मर्मस्पर्शी। रचा जाता है बहुत कुछ- शब्दार्थ योजना के बगैर भी , प्रवाहशील। रचना - बहुत कुछ होना है।रचा जाता है बहुत कुछ- कला और भाव -पक्ष की , सीमाओं के बाहर भी , भाव -पूर्ण। रचा जाता है बहुत कुछ- सार्थक ध्वनि समूह के बिना भी , मर्मस्पर्शी। रचा जाता है बहुत कुछ- शब्दार्थ योजना के बगैर भी , प्रवाहशील। रचना - बहुत कुछ होना है।

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  6. सुन्दर प्रस्तुति
    शिक्षक दिवस की बधाई

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  7. बहुत ही खुबसूरत....

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  8. प्रियंका..यादों को सहारा बन के तैरो...पार उतरो ..!!

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  9. आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    चर्चा मंच-631,चर्चाकार --- दिलबाग विर्क

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  10. यादे हमेशा कडवी ही क्यूँ होती है .....जो दिल को दुखती है और बार बार याद आती है

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