सन्नाटा....
रात के सन्नाटे को
चीरती हुयी यादें
गोधुलि की तरह
हाँ और ना के बीच में
अँधेरा ही दे जाती है !
पल -पल का इन्तेजार था
दुःख में भी
सुख का अहसास था
एक अनमोल मुक्ताहार था
फिर भी ना जाने क्यों आज
तड़पन ही नजर आती है
रात के सन्नाटे को
चीरती हुयी यादें बबंडर की तरह
जीवन ही डुबो जाती हैं !!
प्रियंका राठौर
उदास करती नज़्म .. भावों को बखूबी लिखा है ..
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteभावपूर्ण सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteरात के सन्नाटे को
ReplyDeleteचीरती हुयी यादें
गोधुलि की तरह
हाँ और ना के बीच में
अँधेरा ही दे जाती है !
बहुत खूब लिखा है आपने, आपकी इन पंक्तियों को पढ़कर अनायास ही मन में कुछ शब्द घूमने लगे हैं। ....
भावमय करते शब्दों के साथ गजब का लेखन ...आभार ।
ReplyDeletesundar bhav..
ReplyDeleteरचा जाता है बहुत कुछ- कला और भाव -पक्ष की , सीमाओं के बाहर भी , भाव -पूर्ण। रचा जाता है बहुत कुछ- सार्थक ध्वनि समूह के बिना भी , मर्मस्पर्शी। रचा जाता है बहुत कुछ- शब्दार्थ योजना के बगैर भी , प्रवाहशील। रचना - बहुत कुछ होना है।रचा जाता है बहुत कुछ- कला और भाव -पक्ष की , सीमाओं के बाहर भी , भाव -पूर्ण। रचा जाता है बहुत कुछ- सार्थक ध्वनि समूह के बिना भी , मर्मस्पर्शी। रचा जाता है बहुत कुछ- शब्दार्थ योजना के बगैर भी , प्रवाहशील। रचना - बहुत कुछ होना है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना | मेरे भी ब्लॉग में आयें |
ReplyDeleteमेरी कविता
काव्य का संसार |
मेरी कविता
काव्य का संसार
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteशिक्षक दिवस की बधाई
बहुत ही खुबसूरत....
ReplyDeletebhaut hi sundar....
ReplyDeleteप्रियंका..यादों को सहारा बन के तैरो...पार उतरो ..!!
ReplyDeleteआपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
चर्चा मंच-631,चर्चाकार --- दिलबाग विर्क
यादे हमेशा कडवी ही क्यूँ होती है .....जो दिल को दुखती है और बार बार याद आती है
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