कितना मुश्किल है
ये हर वक्त का बहना
रुकना चाहूँ भी
तो कैसे रुकूँ ......
तुम दोनों भी तो
चल रहे हो
साथ मेरे
लेकिन -
अलग अलग छोरों पर .....
जो कभी मिलोगे
तुम दोनों
तभी तो रुक पाऊँगी
अन्यथा यूँही
अनवरत बहना होगा ......
कभी देखती हूँ
उस क्षितिज पर
जहाँ तुम दोनों
दिखते हो मिलते हुए
लेकिन तब
मै नहीं आती
नजर -
ख़त्म हो जाता है
मेरा अस्तित्व ....
पतली सी खिची रेखा
जो तुम दोनों में
ही समा जाती है ........
शायद -
अभी वक्त नहीं है
मेरे लीन होने का
वजूद के समर्पण का .....
तभी तुम दोनों
साथ साथ होकर भी
बहुत दूर हो .....................
प्रियंका राठौर
very nice post .
ReplyDeletewah!!! bahut khoob ....
ReplyDeleteकभी कभी वक़्त भी बहुत वक़्त लगा देता है....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना।
ReplyDeleteगणेशोत्सव की मंगल कामनाएँ।
बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeletepriyanka bhn bhtrin rachna ke liyen mubaarkbaad ...akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeletebhavpoorna bhasha-shaili ke saath sundar shabdavali,madhur aur rochak racha-
ReplyDeleteख़त्म हो जाता है
मेरा अस्तित्व ....
पतली सी खिची रेखा
जो तुम दोनों में
ही समा जाती है ........
avarnaneeya. aapka abhar.
कितना मुश्किल है
ReplyDeleteये हर वक्त का बहना
रुकना चाहूँ भी
तो कैसे रुकूँ ......खुबसूरत पंक्तिया....
You are really to good in weaving words dear....Lovely post......Bahot Umdah, pasand aaya .....God Bless :))))
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना ... गहन भाव ..
ReplyDeletebhaut khub... acchi prstuti...
ReplyDeletebahut sunder ..
ReplyDeletegahantam bhaavon kaa prastutukaran...priyankaa
ReplyDeleteजीवन की तल्ख सच्चाई को बयां करती सुंदर रचना।
ReplyDelete------
कसौटी पर अल्पना वर्मा..
इसी बहाने बन गया- एक और मील का पत्थर।
प्रियंका जी, शायद आपने ब्लॉग के लिए ज़रूरी चीजें अभी तक नहीं देखीं। यहाँ आपके काम की बहुत सारी चीजें हैं।
ReplyDeleteप्रियंका जी,
ReplyDeleteनमस्कार,
आपके ब्लॉग को "सिटी जलालाबाद डाट ब्लॉगसपाट डाट काम" के "हिंदी ब्लॉग लिस्ट पेज" पर लिंक किया जा रहा है|