Thursday, September 1, 2011

तुम दोनों .....








कितना मुश्किल है
ये हर  वक्त का बहना 
रुकना चाहूँ भी 
तो कैसे रुकूँ ......
तुम दोनों भी तो 
चल रहे  हो 
साथ मेरे 
लेकिन -
अलग अलग छोरों पर .....
जो कभी  मिलोगे 
तुम दोनों 
तभी तो रुक पाऊँगी
अन्यथा यूँही
अनवरत बहना होगा ......
कभी देखती हूँ
उस क्षितिज पर
जहाँ तुम दोनों
दिखते हो मिलते हुए
लेकिन तब
मै नहीं आती
नजर -
ख़त्म हो जाता है
मेरा अस्तित्व ....
पतली सी खिची रेखा
जो तुम दोनों में
ही समा जाती है ........
शायद -
अभी वक्त नहीं है
मेरे लीन होने का
वजूद के समर्पण का .....
तभी तुम दोनों
साथ साथ होकर भी
बहुत दूर हो .....................




प्रियंका राठौर

16 comments:

  1. कभी कभी वक़्त भी बहुत वक़्त लगा देता है....

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  2. बहुत सुन्दर रचना।
    गणेशोत्सव की मंगल कामनाएँ।

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  3. बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

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  4. priyanka bhn bhtrin rachna ke liyen mubaarkbaad ...akhtar khan akela kota rajsthan

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  5. bhavpoorna bhasha-shaili ke saath sundar shabdavali,madhur aur rochak racha-
    ख़त्म हो जाता है
    मेरा अस्तित्व ....
    पतली सी खिची रेखा
    जो तुम दोनों में
    ही समा जाती है ........
    avarnaneeya. aapka abhar.

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  6. कितना मुश्किल है
    ये हर वक्त का बहना
    रुकना चाहूँ भी
    तो कैसे रुकूँ ......खुबसूरत पंक्तिया....

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  7. You are really to good in weaving words dear....Lovely post......Bahot Umdah, pasand aaya .....God Bless :))))

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  8. भावपूर्ण रचना ... गहन भाव ..

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  9. gahantam bhaavon kaa prastutukaran...priyankaa

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  10. प्रियंका जी, शायद आपने ब्‍लॉग के लिए ज़रूरी चीजें अभी तक नहीं देखीं। यहाँ आपके काम की बहुत सारी चीजें हैं।

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  11. प्रियंका जी,
    नमस्कार,
    आपके ब्लॉग को "सिटी जलालाबाद डाट ब्लॉगसपाट डाट काम" के "हिंदी ब्लॉग लिस्ट पेज" पर लिंक किया जा रहा है|

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